गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

चुनाव से वास्ता नहीं; क्रांति के अलावा कोई रास्ता नहीं ;

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चुनाव पूंजीवाद का प्राण है। चुनाव से ही यह जिन्दा है वरना पूंजीवादी व्यवस्था समाप्त हो जायेगी, मर जायेगी। चुनाव पूंजीपति को पार्लियामेेन्ट में पहुँचाता है। इस प्रकार पार्लियामेन्ट पूंजीपतियों का है। इसमें बैठकर पूंजीपति अपने लिए कानून बनाते है कि गरीबों के पास थोड़ी-मोड़ी जो सम्पŸिा रह गई है; उसे कैसे छीन ली जाय। वे ऐसा कानून बनाते है कि गरीबों का हक व हिस्सा कैसे छीन व लूट लिया जाय और यह छीनैती और लूट; कानूनी तौर पर जायज व वैध हो। पार्लियामेन्ट संविधान द्वारा लूट को वैधता प्रदान करता है। चुनाव द्वारा पूंजीपति व प्रतिनिधि गरीबों से वोट मांगते हैं व उसी का गर्दन काटते है। यह पूंजीवादी विधान है। इस प्रकार चुनाव, संसद तथा संविधान पूंजीपतियों की सेवा करते है।

पार्लियामेंट ने हमेशा गरीबों के खिलाफ कानून बनाया। वनों का राष्ट्रीयकरण कर पूंजीपतियों ने आदिवासियों से जंगल छीन लिया सेज व भूमि अधिग्रहण कानून बनाकर गांव के किसानों से समतल व उसके खेत-खलिहान छीन लिये। गंदे बस्तियों के सौदर्यीकरण के बहाने झुग्गी झोपड़वालों से शहर छीन लिया। मजदूरांे से हड़ताल करने के अधिकार छीन लिये, छंटनी को कानूनी जामा पहनाया। जरूरत है तो मजदूरों को रखो वरना लात मारकर बाहर कर दो हायर एण्ड हायर नीति लागू की। मनुष्य से मशीन लाभकारी होता है कि नीति का अनुसरण किया।

चुनाव द्वारा जंगल से आदिवासियों को खदेड़ा जा रहा है। गाँव से किसानों को और शहर से वहाँ के मूलनिवासी गरीब गुरबों को और अमीर विदेशीयों व प्रवासियों पूंजीवतियों निवेश व विनिवेश के नाम पर बुलाया जा रहा है। गरीबों के साथ पार्लियामेंट बेगानेपन का व्यवहार करता है तथा उसे और दरिद्र बनाता है। सबसिडिया अनुदान छीनता है, बैंकरों को सब्सिडीयां व बेल आउट देता है। किसानों को खेती के लिए जमीन नहीं दी जाती लेकिन उद्योगपतियों को उद्योग लगाने के लिए सौ साल के लिए फोकट में पट्टेपर जमींन देता है, चुनाव द्वारा चुना गया पूंजीपतियों का राज्य।

हमारी मूल आवश्यकताएं ही हमारी मूल समस्यायें होती है। चुनाव हमारी मूल समस्याओं के समाधान मंे पूरी तरह विफल रहा है। कहने का अर्थ यह है कि चुनावी राजनीति एक मात्र रास्ता नहीं है। मूल समस्याओं का समाधान जन आन्दोलनों द्वारा सम्भव है। आवश्यकता इस बात की है कि हम जन आन्दोलनों द्वारा देश की मूल समस्याओं के समाधान की तरफ अग्रसर हों।

धूमकेतू दुनिया में परिवर्तन, बदलाव व उथ-पुथल के सूचक होते है...और जब एक साथ तीन-तीन धूमकेेतुओं का भारतीय सियासी क्षितिज पर उदय हो, तो मान लेना चाहिए कि इन्कलाब का पूर्ण योग है; खण्ड योग का प्रश्न ही पैदा नहीं होता...अरविन्द के जरीवाल, अन्ना हजारे और योग गुरू बाबा रामदेव ने निश्चित ही इस ससंदीय प्रणाली को हिला कर रख दिया है.... और यह बिल्कुल ही करप्ट है....सुधार से काम चलने वाला नहीं है... आमूलचूल परिवर्तन व क्रांति के अलावा अब कोई अन्य विकल्प व रास्ता शेष नहीं बचा है.... संकट वैश्विक है और समाधान भी वैश्विक होगा... भारत पूरे विश्व को दिशा प्रदान करेगा....पूंजीवादी प्रजातंत्र का दाहसंस्कार आवश्यक है... मनमोहन, सोनिया, चिदम्बरम के अनर्थ तंत्र को उखाड़ फेकने की आवश्यकता है...मनमाहेन और मोंटेक सिंह आहूलवालिया अर्थशास्त्री नहीं...अनर्थशास्त्री हैं। विश्व बैंक आई0 एम0 एफ0 और अमेरिकी साम्राज्यवाद के पिछलग्गू व दलाल है। जैसे ही देश में क्रांति की हवा बहेगी; ये भाग कर अमेरिका चले जायेंगे। पूरी की पूरी मण्डली जिसमें राहुल गांधी भी हंै, कमीशन खोर हंै। भाजपा कांग्रेस की ही बी टीम है तथा इस देश के अन्य राजनीतिक दल जिनका जमावड़ा तीसरे मोर्चे के इर्दगिर्द हो रहा है; काॅरपोरेटो के ही शार्गीद है। इस प्रकार पूंजीपतियों ने पांच व्यूह बना रखे हैं चाहे जिसे वोट दो कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। पूंजीपति ही पार्लियामंेट में जायेगा और पूंजीपतियों के लिए ही कानून बनायेगा। तुम सोचते हो अपनी जाति केा वोट दिया लेकिन वह एक पूंजीपति है। देशवासी इन्हें पहिचानते है। बेशक ये नये डेन्टींग-पेन्टीग के साथ स्वयं को प्रस्तुत करने की कवायद कर रहे है। बोतल भी पुरानी है शराब भी पुरानी है। अभिजात वर्ग के लिए करप्शन समस्या नहीं, बल्कि समाधान है। पैसा फेको तमाशा देखों की कहावत चरितार्थ है।

पूंजीवाद मंे करप्शन को सिर्फ दिखावा के लिए समस्या माना जाता है। वरन् किसे पता नहीं कि बिना करप्शन के पेट्रोल विकास की गाड़ी एक सेन्टीमीटर भी आगे नहीं बढ़ सकती। धूमकेतू भी इसे भली-भांति वाकिफ हंै। बावजूद वे पूंजीवाद में ही करप्शन को लोकपाल विधेयक व आर0 टी0 आई0 द्वारा समाप्त करना चाहते है। यह जनता को बेवकूफ बनाना है। निजी सम्पŸिा के अधिकार को खत्म करना होगा तभी करप्शन की समाप्ति होगी वरना ना मुमकिन है।

और सवाल यह भी करप्शन का आकार व स्वरूप सिर्फ आर्थिक नहीं होता उसका स्वरूप सामाजिक भी होता है। राजनीतिक भी होता है। सांस्कृतिक भी होता है। करप्शन के कई रूप होते है; सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक बेरोजगारी, गरीबी, भूखमरी ये भी करप्सन ही है। जबकि केजरीवाल सिर्फ आर्थिक करप्शन की बात करते हंै आर्थिक करप्शन से भी खराब होता है। राजनीतिक करप्शन....राजनीतिक करप्शन से बड़ी ठगी भला और क्या हो सकती है। पूंजीवाद की प्रशंसा और समाजवाद को सौ-सौ गालियां देना भी करप्सन ही है।

भारत की जनता बार-बार राजनीतिक ठगी का शिकार होती रही है। राजनीतिज्ञ ने इसे बार-बार कई बार ठगा है। उसका प्रतिफल यह  िकवह जागरूक व सचेत हो चुकी है। अब उसे ठग और फुसला नहीं सकते। सभी राजनीतिक दलों ने अपना नामकरण जनता और उससे जुड़े चिह्नों व प्रतीकों के साथ कर रखा है। कांग्रेस का चुनाव चिह्न दीर्घ काल तक जोड़ा बैल था। सोशलिस्ट तथा प्रजा सोशलिस्ट पाटियों ने अपना चुनाव चिह्न झोपड़ी तथा बरगद का पेड़ रखा। किसी ने अपना नाम जन संघ रखा तो किसी ने जनता पार्टी और जनतादल रखा पर सभी राजनीतिक दलों ने जनता के साथ विश्वासघात किया और अमीरों जमींदारों व्यवसायियों, उद्योगपतियों को अमीर बनाया तथा दरिद्रो को और दरिद्र। देश की जनता दरिद्र से दरिद्रतर और निर्धन से निर्धनतम होती चली गई। किसी ने गरीबी हटाओं का नारा देकर गुमराह किया, तो किसी ने सम्पूर्ण क्रांति का सपना परोसा पर सबने पीठ पीछे अमीरों कीसेवा की। हर चीज की एक सीमा होती है। उदारवाद केनाम पर मनमोहन, सोनिया, चिदम्बरम मोंटेक तथा भाजपाइयों ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी और हिन्दुस्तान को काॅरपोरेट घरानों का दास बना डाला। जनता एक मुक्तियुद्ध लड़ रही है। आम आदमी की आजादी की लड़ाई।...... जन युद्ध

वे राजनीतिक दल अथवा संगठन जो इस संवैधानिक व्यवस्था से बाहर रह कर कामकरते रहे है अथवा जो यह मानते है कि संविधान के अन्तर्गत कुछ भीठीक होना सम्भव नहीं वे जिस बात को कई दशकों से जनता से कह रहें हैं खुद बुर्जुवा पार्टियों के अन्तर्विरोधों ने जनता के बीच स्थापित कर दिया है कि संसद जनता की समस्याओें के प्रति उदासीन और संवेदनहीन है। ये राजनीतिक घूमकेतू उस उदाŸा भावना व विचार को घूमिल कर रहे है। अब जब कि केजरीवाल ’’आम आदीम पार्टी’’ बना चुके हैं, एक बार और ठगने के अलावा आम आदमी को क्या दे पायेंगे। सर्वप्रथम तो इनकी सफलता ही संदिग्ध है क्यों कि असली लड़ाई तो पूंजी की होगी। पार्लियामेन्ट पर बड़ी पंूजी का कब्जा होगा। साम्राज्यवादी पूंजी के सामने ये कहां टिकेंगे। केजरीवाल को छोटी सीबात समझ में नही आती कि धन तो धन होता है, जिसका स्वभाव ही शोषण व दमन के लिए है, चाहे काला धन हो अथवा गोरा धन हो। गोरा धन भी कम खतरनाक नहीं होता।

केजरीवाल ने अपने राजनीतिक पार्टी का नाम ’’आम आदमी पार्टी’’ का लेबेल जरूर लगा लिया है,पर इसमें एक भी आम आदमी नहीं है। इससे बड़ी राजनीतिक ठगी भला और क्या हो सकती है? इसमें तो सारे के सारे मध्यम वर्ग के लोग हंै। यह मध्यम वर्गीयों की पार्टी है। यह आम आदमी की पार्टी कतई नहीं है। आम आदमी के सामने रोजगार का संकट है। केजरीवाल ने रोजगार को मुद्दा ही नहीं बनाया उनकी पार्टी में एक भी आदमी बेरोजगार नहीं है। वह बेरोजगारी का दर्द क्या जाने? केजरीवाल के लिए गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, कुपोषण, निरक्षरता मुद्दे ही नहीं हैं। इसीलिए केजरीवाल कौन है? यह जानना मुश्किल नहीं है। यानी एक बार फिर उसी का खतरा मंडरा रहा है, जिसके खलनायक केजरीवाल, अन्ना हजारे, बाबा रामदेव व जनरल वी0 के0 सिंह हो सकते हंै क्योंकि इन्हें मसीहा के तौर पर पेश किया जाने लगा है। ऐसे मसीहाओं से होशियार रहने की जरूरत है।

यह पूंजीपतियों का ही मोर्चा है। पहला मोर्चा कांग्रेस का यू0पी0ए0 है। दूसरा मोर्चा भाजपा का एन0 डी0 ए0 है। तीसरा मोर्चा लोहियावादियों का है, जिनका साथ संसदीय वामपंथी देते आये हैं। सरमायादारों व पूंजीपतियों ने केजरीवाल के नेतृत्व में चैथा मोर्चा भी खड़ा कर दिया है ताकि पूंजीवादी सिस्टम को जिंदा रखा जाय। वरना् पूंजीपति रहेंग कैसे? क्योंकि एक सिस्टम के तहत पूंजीवादी व सामंती व्यवस्था फल-फूल रही है। उस सिस्टम के ये चारों धूमकेतु हैं। ये सब इसी व्यवस्था के पोषक हैं जबकि आवश्यकता इसके विनाश की है, जो 2017 की क्रांति का केन्द्र बिन्दु होगा।

क्रांति के केन्द्र में मेहनतकश मजदूर किसान, निम्न पूंजीमति वर्ग होगा, जबकि हिरावल दस्ता इस मुल्क के छात्र और नौजवान होगें, जिसका उद्देश्य होगा क्रांतिकारियों, शहीदों के स्वप्न को साकार करना व रोजी-रोटी मुहैया करना क्योंकि भारतीय काॅरपोरेट साम्राज्यवादी दलालों ने आम जनता से उसका रोजी-रोजगार छीन लिया है। किसानों से उनके खेत-खलिहान छीन रहे है। आदिवासियों से जंगल, जंगलता आम आदमी, बेरोजगारी व बेगारी का सामना है व विलुप्त होने के कागार पर है एवं अपने अस्तित्व की की जंग लड़ने को अभिशप्त व त्रस्त हैं। गांव उजड़ रहे है, जंगल उजड़ रहे हैं, शहर की सड़के धस रही है व बड़े-बड़े गड्ढों में तब्दील हो रही है। किसान आम हत्यायें कर रहे है। 2003 से प्रतिवर्ष सौ सैनिक आत्महत्यायें कर रहे हैं। व्यवसायी जहर खा रहे है। इस देश के छात्र और नौजवान सुसाइड नोट लिखकर फांसी पर झूल रहे है। सŸाा प्रतिष्ठान में बैठे लोग कह रहे हे देश द्रूतगति से विकास कर रहा है। केजरीवाले अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, वी0 के0 सिंह0 सरीखे ईमानदार लोग इस सिस्टम को बचाने में लगे हैं। गरीबो के वोट पर अमीरों का यह पंूजीवादी सिस्टम जिंदा है। उसी प्रकार समाज मंे समांती व्यवस्था की जड़ विवाह है। अगर वोट और विवाह बहिष्कार की इन्सान को अक्ल आ जाये तो पूंजीवादी व सामंती व्यवस्था का नाश अवश्य हो जायेगा।...पर हमारे देश में समझदारी का स्तर ऊँचा नहीं है।

राजस्थान के किसान अपना लहसुन 2 रूप्ये किलोग्राम बेच रहे है। बनिया इसे बाजार में 10 रूपयें किलोग्राम बेचता है और किसानों के घर से लहसुन पूरी तरह निकल जायेगा और बाजार में आ जायेगा तो काॅपरेट घराने इसे दो सौ रूपये किलो बेचेंगे। रिलायन्स बमुश्किल 100 रूपये का रसोईगैस 1300 रूपये प्रति सेलेण्डर बेच रहा है। इतनी बड़ी लूट को छूट देने वाला व बनियों पर आधारित बाजार व्यवस्था केा समर्थन देने वाला मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, तमाम लोहियावादी, संसदीय माक्र्सवादी व केजरीवाल, अन्ना, रामदेव तथा हमारे देश के भूतपूर्व जनरल वी0 के0 सिंह को ईमानदार कैसे कहा जा सकता है?

सच्चाई यह है कि समस्याओं का समाधान चुनाव नहीं है। हमारा पार्लियामेंट ही जनविरोधी बन चुका है। जनता गरीब व पार्टिया अमीर बनती चली गयी हैं। सन् 2009-11 के दौरान कांग्रेस ने देश विदेशों के उद्योगपतियों से 2008 करोड़ रूपये उगाहे। भाजपा में 994 करोड़ रूपये, बसपा ने 484 करोड़, माकपा ने 417 करोड़, सपा ने 279 करोड़ रूपये। इसीलिए हमारे राजनीतिज्ञ व राजनीतिक दल दुनिया भर के उद्योगपतियों व पूंजीपतियों के एजेण्ट बन चुके हंै। इन्हें हित देश से ज्यादा विदेश हित की परवाह है।

आवश्यकता इस बात की है कि क्रांतिकारियों के बताये रास्ते पर चलते हुए देशवासी व्यवस्था का अंतकर मेहनत करने वालों का राज्य कायम करें। न कि पूंजीपतियों के बनाये हुए अन्ना, केजरीवाल, रामदेव, किरणवेदी, वी0 के0 सिंह पांचवे घेरे में फंस जायेंगा।....और आगे पांच साल 2019 तक कराहते रहे बेहतर यह हो कि चुनाव से वास्ता तोड़, क्रांति का रास्ता पकड़े।

            :-कवि आत्मा वाराणसी दिनांक 11/12/2012

1 टिप्पणी:

Himanshu Kumar ने कहा…

बहुत बढ़िया विश्लेषण किया है मित्र