रविवार, 10 नवंबर 2013

गांधियन माओवाद



A. माओवादियो को पोलिटिकल बार्गेनिंग करनी चाहिए |

B. भारत के माओवादियो को २०१४ का संसदीय चुनाव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष लड़नी चाहिए व संविधानिक तरीके से भी अपने मुक्ति युद्ध को आगे बढ़ाना चाहिए |


C. उन्हें यह मांग रखनी चाहिए कि जेल में बंद २५००० माओवादियो को रिहा करने  का जो प्रधान मंत्री वचन देगा हम २९१४ के संसदीय चुनाव में उसे ही समर्थन देंगे |


D. मोदी मैदान से बाहर असली लड़ाई कांग्रेस और तीसरे मोर्चे के बीच
भारत के भावी प्रधानमंत्री...

1. मुलायम सिंह यादव 
2. नितीश कुमा
3. राहुल गांधी 

E. जो हमारी मांगे मानेगा हमारा समर्थन उसी को होगा |


     - कविआत्मा

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

ओल्ड डेमोक्रेसी बनाम न्यू डेमोक्रेसी


 सामंती व पूंजीवादी जनवाद के बाद जनता का जनतंत्र या जनता का जनवाद आता है।  यह प्रजातत्रं का विकसित व डेवलप रूप  है | सामंतों के बीच की समानता, सामन्ती जनवाद कहलाता है.. जबकि पूजीपतियों के बीच की समानता पूंजीवादी जनवाद डेमोक्रेसी या रिपब्लिक, कानून शब्द का जन्म यूनानी दर्शन या दार्शनिकों द्वारा हुआ.. जिसके लिए हम सुकरात, प्लेटों और अरस्तू  के ऋणी हैं | पर इनको ठोस व मूर्त रुप देने का काम यूरोपीय देशों इंगलैंड, फ्रांस व जर्मनी में हुआ |  .. इसको यो भी कहा जा सकता है कि अनुवर्त्तियों के बिना परवर्त्तियों का क्या महत्व ? हमारे देश में सामंतों व पूंजीपतियों का ही प्रजातंत्र है . अभी यहाँ प्रजा का प्रजातंत्र स्थापित नहीं हुआ है ...सवाल पैदा होता है  कि प्रजा का प्रजातंत्र कब और कैसे स्थापित होगा ?
       जब स्वतंत्रता, समानता व भाईचारे की बात आती है, तो एक क्षण के लिए हम भूल जाते है कि स्वतंत्रता, समानता व भाईचारे का मतलब घोड़े अथवा गधे बीच समानता सम्भव नहीं है |.. समानता, स्वतंत्रता व भाईचारे भी सापेक्षिक शब्द हैं. ये निरपेक्ष नहीं होते, जैसे थेलीज, एनेक्जिमेन्डर, एनेक्जीमेनिज, पारथागोरस, हेरेक्लाइट्स, हेगल, ल्यूसियस ,डिमाक्रिटस, एपीक्यूरस टोमस ,कम्पानेल, सेंट साइमन, रार्बट ओवन ,चार्ल्स फुरिये  के बिना  फ़ायरवॉक व कार्ल मार्क्स का अस्तित्व सम्भव नहीं है.. दरअसल ये विचारधाराएं जुडी हुई और अन्तर सम्बंधित है | इसी प्रकार विभिन्न प्रजातंत्रों का भी अपना कल और क्रम है इस क्रम को तोड़ने का दम सिर्फ क्रांतियों में होती है |
       सच पूछिये तो प्रजातंत्र की जननी इंग्लैडं ही है. जहां एलिजाबेथ काल में संसद नाम की संस्था पैदा हुई.. जिसका षड़यंत्रों, संघर्षों , शोषण व दमन की छाया में कच्छपरीति से सृजन व विकास हुआ. अपने उत्पत्ति काल में यह सामंती प्रजातंत्र था. 1603 ई. में स्काटलैंड का शासक इंग्लैडं के राजसिंहासन पर जेम्स प्रथम के नाम से सत्तारुढ़ हुआ था.. जिसके सत्ता सीन होते ही संसद के साथ संघर्ष शुरु हो गया. जिसकी समाप्ति 55 साल बाद 1688 के गौरवपूर्ण क्रांति के सम्पन्न होने के साथ ही हुई.. जिससे एक नये युग का सूत्रपात हुआ.. इस प्रकार सत्रहवी शताब्दी में इंगलैंड में संसद का विकास हुआ | यह वह समय था जब सामंतवाद के गर्भ में पूंजीवाद पल रहा था | यही नहीं प्रोटेस्टेटों और कैथोलिकों के बीच के अन्तर्विरोध चौड़े होते चले जा रहे थे| 1603 में वाटसन के नेतृत्व में संसद भवन को बारुद से उड़ाने की योजना बनी | चिनगारी लगाने का काम अनुभवी सैनिक गार्ड फाक्स के जिम्मे था . अन्ततोगत्वा जिसका भंडाफोड़ हो गया... गार्ड फाक्स तहखाने में आग लगाने के लिए तैयार रंगे हाथों पकड़ा गया.. फाक्स और उसके साथियों को प्राण दण्ड दिया गया | बावजूद  पूंजीवादी प्रजातंत्र का शिशु जन्म ले चूका था |
        राजतंत्र आहिस्ते-आहिस्ते कमजोर व पूंजीवाद हावी होने लगा तथा द्वितीय संसद 1612-1620 .. इस बार संसद ने राजा तथा उसके मंत्रियों पर अभियोग चलाने का अधिकार हासिल कर लिया था .. सामंती जनवाद के खिलाफ; यह पूंजीवादी प्रजातंत्र की जीत थी. तृतीय तथा चतुर्थ संसद 1621-1622 और 1624. संसद ने कोषाध्यक्ष पर अभियोग चलाया. सन 1625 में जेम्स प्रथम की मृत्यु हो गयी.. इसके साथ संसद भी भंग हो गयी.. संसद की सहायता से इसके पुत्र चार्ल्स प्रथम ने 1625-1629 तक शासन किया, 1629-1640 तक उसने बिना संसद की सहायता के ही राज किया |  चार्ल्स ने स्वेच्छाचारी शासन स्थापित की | फलत: 30 जनवरी 1649 को संसद ने चार्ल्स को प्राण दंड की सजा दी.. बावजूद ये राजतंत्र का खात्मा नही था; न ही प्रजातंत्र की स्थापना ही.. पर निश्चित ही यह दुनिया में प्रजातांत्रिक युग की शुरुआत की दिशा में एक महत्वपूर्ण  कदम था |  दुनिया के दूसरे देशों में भी ऐसी घटनायें होने लगी | 1793 में लुई फ्रांस के राजा 16 वें को भी फासी पर लटका दिया . यह पूंजीवादी प्रजातंत्र के उदय का काल था | पूंजीपति व मध्यम वर्ग संसद के सृजन के साथ-साथ; संसद पर काबिज हो रहा था. इसके साथ ही राजनीति और दर्शन के क्षेत्र में पूंजीवादी प्रजातंत्र व समाजवाद का भ्रूण पलने लगा था. नीदरलैण्ड ,16 वीं सदी, ब्रिटेन 17 वीं सदी, फ्रांस 18 वीं सदी में पहली बार बुर्जुआ क्रांतियों के फलस्वरुप पूंजीवाद ने सांमतवाद पर विजय हासिल की. भू-दास प्रथा ढ़ह गयी. निरंकुश राजाओं के तख्तें पलट दिये गये | पूंजीपतियो का प्रजातंत्र दुनिया में स्थापित हुआ |
      इस बीच सर्वहारा वर्ग ने भी सिर्फ आर्थिक मांगे, वेतन, कार्यदिवस छोटा करने की मांगे, अपितु राजनीतिक स्वतंत्रताओं के लिए भीषण संधर्ष आरम्भ कर दिये. फ्रांसिसी नगर लियोन के मजदूरों और दस्तकारों ने 1831और 1834 में अपने जीवन परिस्थितियों को बेहतर बनाने के साथ फ्रांस में जनतंत्र घोषित करने की मांग की..19 वीं सदी के चौथे पांचवे दशकों में मजदूर चार्टिस्ट आदोंलन के आर्थिक और राजनीतिक दोनों ही उद्देश्य थे ...  आन्दोलन सही  मायने में सर्वहारा  जनसाधारण का राजनीतिक रुप से संगठित क्रातिकारी आंदोलन था..जर्मनी के साइलेशिया के  बुनकरों ने 1844 में एक बड़ी कारवाई की .इन्होंने बुर्जुवा व्यवस्था के खिलाफ जर्मन सर्वहारा के वर्गसंघर्ष  का सूत्रपात किया और य़ूरोपीय सर्वहारा वर्ग की क्रांतिकारी कारवाईयों पर प्रभाव डाला.
       5 मई 1818 में काल मार्क्स का जन्म हो चुका था जिसका बाप हेनरीक मार्क्स उसका लालन पालन वाल्तेयर, रुसो, लेसिंग सरीखे विद्धानो  तथा य़ूरोपिय समाजवादियों के आधार पर कर रहा था.. 1844 में पहली बार मार्क्स –एंगेल्स  पेरिस में मिले .. 1847 में मार्क्स कम्यूनिस्ट लीग से जुड़ गये.. 1848 में कम्यूनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र आया.. जिसका केन्द्र बिन्दू था पूंजीवाद के गर्भ में ही उसके पतन की भौतिक परिस्थितियां निर्मित होती हैं .. उन्होंने सर्वाहारा वर्ग को पुरानी प्रणाली को नष्ट करने में एक समर्थ शक्ति के रुप में निरुपित किया.. इसके साथ एक सामाजिक प्रणाली के दूसरे सामाजिक प्रणाली द्वारा नियम संगत प्रति स्थापना को निरुपित किया.. हेगेल के द्वन्दवाद और फायर बाख के भौतिकवाद ने मार्क्सवादी दर्शन के प्रस्थापना बिन्दू का काम किया. फायर बाख का कहना था कि प्रकृति की व्याख्या रहस्य व विचारों का सहारा लिये बिना वह जो वास्तव में है किया जा  सकता है | पर यूनानी दर्शन को खंगालने से पता चलता है कि मार्क्स से पहले मार्क्सवाद पैदा हो चूका था |
  लेनिन ने 1898 में रुसी सामाजिक जनवादी मजदूर पार्टी की स्थापना की थी.. 1917 में ठीक 19 साल बाद रुस समाजवादी देश बन गया .1921 में चीन में कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई.1949 में 28 साल बाद चीन में भी नव जनवादी देश बना. 1925में भारत में कम्युनिस्ट  पार्टी की स्थापना हुई. 88 साल बाद भी भारत में समाजवाद, नवजनवाद अथवा जनता का जनवाद या फिर मेहनतकश जनता का प्रजातंत्र क्यों नही कायम हो पाया और कैसे? कब कायम होगा ? तथा प्रजा के प्रजातंत्र की क्या जिम्मेदारी व कार्यभार होंगे?
          दरअसल सच्ची बात यह थी कि भारत के सभी कम्युनिस्ट ब्राम्हण थे.. अर्थात  कुलीन एलीट व अभिजात वर्ग से आये थे.. रिवोल्यूशन उनका रोमांश था; न कि जरुरत | जिसकी पूर्ति अल्ट्रा वाम ने की.. ससंदीय व नकली साम्यवादियों की तुलना रुसी मेनशेविकों व चीनी  कोमितांड़ से करनी चाहिए.. यही नहीं, इन्होंने भारत के  सामाजिक भौतिकवाद की हमेशा अवहेलना की.. तथा सेफ्टि बाल्व का काम किया, ताकि यथा स्थिति कायम रहे. आज भी ये इसी भूमिका में हैं ये क्रांति के नाम पर चीन व रुस का व्याख्या भर करते रहें | भारत में क्रांति की बात इहोंने कभी सोची ही नहीं और तो और इन्होंने सर्वाहारा वर्ग को भी भारतीय संदर्भ में परिभाषित नहीं किया.. आदिवासी, दलितों पिछड़ों, छात्रों व नौजवानों को सर्वहारा नहीं माना.. इन्हे  यह भी याद नहीं आया कि भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, अशफाक उल्ला छात्र व नौजवान थे.इन्होंने कल कारखानों के मजदूरों, भूमिहीन किसानों व कृषि मजदूरों तक अपने को सीमित रखा.. इन्हें यह भी नजर नहीं आया कि भारत भौगोलिक रुप से एक नही; तीन देश है जंगल समतल और शहर .. इनके बीच इस सवाल को लेकर भी खेमेबाजी रही कि भारत में क्रांति का क्या स्वरुप होगा ? यानी जनवादी या समाजवादी ?  साथ ही साथ विभिन्न राष्ट्रीयताओ को भी भूल गए | क्रांति  की जगह इन्होने चुनाव व संसद को ही मूल माना |
       इन्होंने गांधीवाद, अम्बेडकरवाद , लोहियावाद को क्रांति के लिए उपयोगी नहीं माना न ही मार्क्सवाद कि बॉट से तौलने की कोशिश की |  जबकि आवश्यकता इस बात की है कि इन्हें भी क्रांतिकारी कतार में शामिल किया जाय.. यही नही इन्होंने दीर्ध कालीन जनयुद्ध के नाम पर क्रांति के लिए कोई फौरी योजना पेश नहीं की.. ये तो यह भी नहीं समझ पाये कि बड़े पैमाने पर गरीब व बेरोजगार का पैदा होना पूंजीवादी क्रांति है.. जिसे जनविरोधी होने की वजह से जनता समाजवादी क्रांति में बदल देगी | वैसे  क्रांति शुरु हो चुकी है जो अब दिखाई भी पड़ने लगी है .. जंगल में क्रांति हो रही है समतल में भी क्रांति हो रही है, तथा शहरों व महानगरों में भी.. गांव दरिद्र हो रहा हैं. ग्रामीणों का ऐसा महसूस होना , क्रांति है.. शहरों व महानगरों में भी  नौजवान बडे पैमाने पर बोरोजगार व कंगाल हो रहें हैं; यह एक क्राति है उन्हें अब एहसास होने लगा हैं कि बेरोजगारी व गरीबी का असली कारण कारपोरेट घराने व पूंजीपति वर्ग ही है.. आज देश मं कारपोरेट व पूंजीवादी प्रजातंत्र हैं.. राष्ट्र की न सिर्फ 70 प्रतिशत सम्पत्ति पर तकरीबन आठ हजार पूंजीपति व कारपोरेट काबिज हैं बल्कि विधायिका कार्यपालिका व न्यायपालिका भी इन्हीं की मुठ्टी मॆं है व राष्ट्र की साडी संपत्ति पर जमें हुए हैं..इनकी सत्ता को पलट कर ही प्रजा का प्रजातंत्र कायम हो सकता है |
     सारे के सारे  रोजगारो पर अपना एकाधिकार जमा रखा  है, सारा देश बेरोजगार बिना धंधा का हो चुका है पहले तो ये पसीना पीते थे  अब खून पी रहे हैं . देश के नागरिक कुपोषण के शिकार हैं महिलाओं के शरीर में खूनपानी नहीं रह गया है.. शिक्षित युवक रोजगार के लिए भटकता चल रहा हैं .. मानव नहीं  पूंजीपती  मशीनों को तरजीह दे रहा हैं .. निजी आर्थिक मुनाफा के आगे; वह सामाजिक व  राष्टीय बेनेफिट को भूल चुका है.. मुठ्ठी भर कारपोरेटों व मल्टीनेशनल के विकास को ये देश  व राष्ट्र का विकास समझते है ..भारत एक कम्पनी में तब्दील हो चुका है.. ऐसे में सिर्फ एक ही सास्ता शेष  रह गया है कि क्रांतिकारियों के नेतृत्व में पूंजीपतियों के ससंदीय प्रजातंत्र को जड़ मूल से उखाड़ फेका जाय.. पूंजीपतियों  का प्रजातंत्र नहीं ; नवजनवादी जनतंत्र ,,प्रजा  का प्रजातंत्र  बहाल किया जाये, इसके लिए  क्रांतिकारी यानी नवजनवादी समाजनादी संविधान की जरुरत है; जो समाजवाद के वसूलों व सिद्दातों पर आधारित हो ,, इस दुनीया  में कोई मालिक कोई  मजदूर क्यों हो,, ऐसा धक्का मारो की यह दीवार ढ़ह जाए यारों.. हमारे देश में संसद की नीवं  सामंती व पूंजीवादी अंग्रेजों ने  रखी थी | जिसने सामंती व पूंजीवादी संविधान के साथ इसके संचालन के लिए शासन व प्रशासन खड़ा किया.. पीएम से लेकर पंचायत तक दिल्ली से लेकर गांव की गलियों तक इसने सरकार के नाम  पर शोषण की  एक सीढ़ी खड़ी  कर दी थी  | .. एलेक्शन ने जनप्रतिनिधी व मंत्रियों के नाम पर करोंड़ों कमीशन खोर पैदा किये.. रिवोल्यूशन का मतलब इस सीढ़ी को समाप्त करना है, जिन्हें नौकरी नहीं उन्हें नौकरी देनी हैंजिन्हें जमीन नहीं उन्हें जमीन देना हैं.. यहां नौजवानों के पास नौकरी नहीं हैं किसानो के पास जमीन नहीं हैं.. मजदूरों के पास खेत और कारखानें नहीं हैं.. दुकानदार की अपनी दुकान नही हैं.. रिक्शा चालक का अपना रिक्शा नहीं है.. डॉक्टर का  अस्पताल नहीं हैं प्रबंधक उसका मालिक  है .प्रजा का प्रजातंत्र या  न्यू डेमोक्रेसी में इन्हें स्वामित्व प्रदान करेगा | स्कूल का मालिक कोई प्रबंधक कैसे हो सकता है ? स्कूल के असली मालिक तो टीचर और विद्यार्थी ही  है .. ठेकेदारी प्रथा कि भला क्या जरूरत ?. जनता ही खुद जनप्रतिनीधि होगी. कानून ऊपर से नहीं नीचे से बनेगा | .. जनता स्वंय अपने लिए कानून बनायेगी.. पूंजीपति व सामंतों के राज में पूंजीपति व सामंत कानून बनाते है |मजदूरों , कर्मचारियों की छटनी करते हैं | प्रजा के प्रजातंत्र में मजदूर व कर्मचारी पूंजीपतियों की छुट्टी व छटनी कर देगें. सिर्फ राज्य होगा सरकार नाम की कोई चीज व संस्था नहीं रहेगी.|.नागरिक सामाजिक शासन व प्रशासन कायम होगा |  उच्चतम विकास के साथ राज्य व वर्ग का भी लोप हो जायेगा. प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,राज्यपाल, का चुनाव प्रजा करेगी जनप्रतिनिधि नहीं.. पार्लियामेंट तो होगी पर पार्टी लेश होगी.. श्रम ही सिक्का होगा.. श्रम करने वाले को सब कुछ उपलब्ध होगा.शोषको का स्वामित्व समाप्त कर जनता का स्वामित्व कायम किया जायेगा |
    न्यू डेमोक्रेसी अथवा प्रजा के प्रजातंत्र में शोषको का सितारा डुबो दिया जायेगा | अनाज सिर्फ खाने के लिए होगा; ब्यापार के लिए नहीं; इसलिए महंगाई अपने आप समाप्त हो जायेगी | राज्य में सभी नागरिको की हिस्सेदारी व भागीदारी सुनिश्चित होगी |  हम सभी सेवाओ को राष्ट्रीय सेवा घोषित करेंगे |राज्य के सभी नागरिक बिना किसी भेद भाव के वेतनभोगी होंगे जनसँख्या का पूर्ण नियोजन होगा | मानसिक और शारीरिक श्रम के बीच समानता कायम की जायेगी | हम किसी की जमीं छीनने नहीं जा रहे;बल्कि आवस्यकता होने से जमीन देंगे | किसान अगर अपने खेत में काम कर रहा है और अनाज उपजा रहा है ; तो वह अपना काम नहीं बल्कि राष्ट्र का काम कर रहा है; हम उसे वेतन देंगे | माध्यम वर्ग का कार्पोरेट और कैप्टिलिस्ट क्लास शोषण कर रहा है , हम उसका धन दो सालो में दुगुना कर देंगे उसे राष्ट्रीय पूंजीपति क़तर में खड़ा होने का अवसर प्रदान करेंगे | प्रजा का प्रजातंत्र विश्व बैंक तथ आईएमऍफ़ के आगे हाथ नहीं पसारेगा | हमें अपनी प्रजा पर भरोसा है और प्रजा को हम पर | हम उसी से लेकर उसी को देकर समाजवाद का निर्माण करेंगे इस प्रकार प्रजा के प्रजातंत्र की स्थापना होगी |
 सुना है जंगल में माओवादी आ गये हैं. आदिवासियों से उनकी अच्छी पटती है, जंगल में अपने ढंग का वे विकास कर रहें हैं हम उनके साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे | जंगल में माओवाददियों  को रहने देंगे .जंगल में माओवाद होगा.| क्योकि जंगल के लोग उन्हें चाहते और पसंद करते है |
     हमारे गावं गरीब हो रहें है.100 बीघे के किसान आज पांच बीधा का किसान बन गये है, गरीबों का दर्शन है गांधी वाद गांव में पिछड़े रहते है ; पिछड़ो का  दर्शन है लोहियावाद .. गांव में चमार, दुसाध दलित जातिया रहती  हैं .. दलितों का प्यारा दर्शन है अम्बेडकरवाद .. गांवों में हमारे तीनों दर्शन जिनका मूल मंत्र स्वदेश स्वालम्बन व स्वराज है, तीनों दर्शन एक साथ फूलेगें फलेगें |  समाजवाद के रास्ते पर हम मिल के चलेंगे  हमारे जो भाई शहरों में आ चुके हैं. वे सम्पत्ति वाले है उनकी पूंछ गांवतक फैली हुई है इनकी चोटी और पूंछ साम्राज्यवादियो ने पकड़ रखी है | क्रन्तिकारी संविधान द्वारा पूंछ और चोटी को काट कर प्रजा के हवाले कर दिया जायेगा |  शहर व महानगर वैसे भी पूंजीपति व पैसे वालों के ही होते हैं .. शहरों में मार्क्सवाद चलेगा |
     भौगोलिक दृष्टि से भारत एक नहीं तीन देश हैं.. जंगल में ज्यादा समानता हैं,, वहां साम्यवाद चलेगा .. समतल व गांव  में खेती, पशुपालन व बागवानी होती हैं यहां नवजनवाद आयेगां यहाँ प्रजा का प्रजातंत्र कायम होगा | शहर कल-कारखानों व बाजारों के लिये जाना जाता हैं , इसी लिए यहां समाजवाद चलेगा | समाजवाद का युद्ध शहरो और महानगरो में ही लड़ा जायेगा अभी वैचारिक क्रांति सुरु हो चुकी है जो २०१७ तक सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति में बदल जायेगी | इस प्रकार भारत में त्री-स्तरीय क्रांति सम्पन्न होगी.  और 2025 तक प्रजा का प्रजातंत्र अथवा न्यू -डेमोक्रेसी कायम हो जाएगा  |

बड़ा बुरा हुआ !

बड़ा बुरा हुआ
बड़ा बुरा हुआ
बड़ा बुरा हुआ !
मोदी कि रैली में बम छूटा ,
मोदी बेचारे का भाग फूटा
बड़ा बुरा हुआ
बड़ा बुरा हुआ
बड़ा बुरा हुआ !

sahitya


शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

भाजपा या भादपा


भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा..कितना अच्छा नाम है.. एक ऐसी राजनीतिक पार्टी जो भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करती हो. और तो और उसका नाम भी भारत की जनता हो यानी जैसा नाम वैसा काम .. पर कोफ्त यह कि यहां तो सबकुछ उल्टा-पुल्टा है..यानी नाम लक्ष्मी पर हकीकत में निराग कंकाल ..जो भी हो ,नाम अगर काम के अनुरुप हो तो अच्छा लगता है, पर अगर काम नाम के विपरीत हो तो नाक भौ सिकुड़ना स्वाभाविक है.. इसीलिए मैं ने भाजपा का नाम बदलकर भादपा कर दिया है.. भादपा अर्थात भारतीय दंगाई पार्टी.. एक ऐसी पार्टी जो न सिर्फ अपने जनप्रतिनिधियों, कैडरों व समर्थक नौकरशाहों से दंगा करवती है, बल्कि सवाल भी दागती है कि आप दंगा रोकने में नाकाम मात्र रहे.. आप को इस्तीफा दे  देना चाहिए.. मतदाता आपकी पार्टी से दूर भाग रहे हैं.
             सर्वप्रथम तो मुझे यही समझ नही थी कि कोई सियासी पार्टी दंगा करा कर कैसे दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो जायेगी.. पर अन्तत मैंने लोहा मान लिया कि दंगा भी बड़े काम की चीज है प्रव्यक्षम किम प्रमाणाम.... अपने फेंकू मोदी को ही देख लें ..फेंकू मोदी ने गुजरात में हैट्रिक लगा दिया ..दिल्ली की तरफ कदम बढ़ा लिया....आडवानी जी यानी आग-पानी को कोई पूछने वाला ही नही हैं.. अब तो भाजपा संसदीय बोर्ड ने भी नके वजीर दृए-आजम के प्रत्याशीपन पर बाकायदा अपनी मुहर जड़ दी है..कहावत बाइस केरेट सही है कि दुल्हन वही जो पिया मन भाये. .. प्रत्याशी वही जो पार्टी मन भाये..दुश्मन के जलने से क्या होता है.. वही होता है जो म़ंजुरे खुदा होता है...यह बात और है कि मोदी प्रधानमंत्री न बन पायें...पर भाजपा की तरफ से मान न मान मै तेरा मेहमान ... भाजपा की तरफ से हिन्दुस्तान के वजीर-ए-आजम की कुर्सी पर आसीन हो ही चुके हैं। मानना पड़ेगा मोदी किस्मत का हाथी है... और तो और हाथी जैसा उसका चेहरा भी काला है...काला यानि कालिख नुमा .. आदमी के खून का रंग वैसे तो लाल होता है. पर दंगाइयों के चेहेरे पर पड़ते ही वह काला हो जाता है।
              दिग्गी बाबू सामंत व राजा ठहरे .... वे मोदी का उपहास उड़ाते हैं और नरेन्द्र मोदी को फेंकू मोदी कह कर तौहीन करते हैं..वे भूल जाते हैं कि मोदी के प्रशंसकों की संख्या लाखों करोड़ों में है.. बाजार गली और सड़कों पर मोदी प्रशंसकों की बाढ़ आ गई है.. जिधर नजर दौड़ाओं झुंड के झंड मोदी प्रशंसक दिखायी पड़ रहे हैं... बर्खुदार एक दिन एक मोदी प्रशंसक से सबका पड़ा .. प्रशंसकों की झुंड से वह बिछुड़गया था .. हांकने लगा मोदी का कोई शानी नहीं... औरतों को सम्मान देना कोई उनसे सीखे.. जन्मजात कुंआरे हैं. अब आप आलोचकों की जुबान तो सी नही सकते....” किसी ने हवा में आवाज उछाल दी. बेचारे मुहब्बत के मारे हैं ”ऐसी अश्लील और भोंडी टिप्पणी मुझे रत्ती भर नहीं भायी.. मैंने चिल्लाकर उसका प्रतिवाद किया.. प्रलाप बंद करो.. मुहब्बत करने वाला कभी दंगाई हो नही सकता है..वह भारतीय दंगा पार्टी का सदस्य हो सकता है.. भाजपाई हो नही सकता...बाते चली तो दुर तक चली गई .. वह एक भद्र महिला पत्रकार थी.. उन्होंने कहा कि मैं फेंकू मोदी के कट्टर समर्थकों में से एक हूं... प्रधानमंत्री के प्रत्याशी के रुप में मोदी हमारी प्राथमिकताओं में से हैं..वे हम ल़ड़कियों की तरह लिपिस्टिक से अपने दोनों होठ रंगते हैं.. औरतों को रिझाना कोई उनसे सीखे...नर-नारी समानता का उनसे बड़ा झुडाबरदार कोई हो ही नही सकता है..उनकी यही खूबी प्रधानमंत्री के सभी उम्मीदवारों पर इक्कीस पड़ती है....मर्दाना का जनाना वेष धारणा करना अगर नर-नारी समानता का घोतक नहीं, फिर क्या है? मेरी तो घोंघी ही बंध गई ... मैं पराजित हो चुका था, क्योकि आजतक मैंने किसी मर्द को लिपिस्टिक से होठ रंगते नहीं देखा था ..नमो नमो का पाठ मैं भी करने लगा.
            और फिर मेरी क्या औकात है. मोदी के समर्थकों में बड़े-बड़े धुरधंर हैं...अन्तराष्टीय योग गुरु बाबा राम देव सरीखे सतं महात्मा मोदी पर मुग्ध हैं.. बाबा राम देव भी पियारे नारी वादी ठहरे.. चादीं सरीखे बालों पर कालिख लगाने का कुछ निहितार्थ हो या न हो पर बाबा का रामलीला मैदान से साड़ी पहन कर चम्पत हो जाना और मोदी समर्थकों में अवतरित होना धर्म निरपेक्ष छवि वालों को अचम्भित किये बिना नही रह सकता.. क्योंकि हम भुल जाते है कि हमारे साधु सतं हमेशा से न सिर्फ नारीवादी रहें है बल्कि हिन्दुत्व के साम्प्रदायिक वायरस से संदुषित भी.. सवाल पैदा होता है कि अब बाबा को कौन याद दिलाये कि जब से वे फेंकू मोदी के समर्थक बने हैं. उनका कद काठी और बौना नजर आने लगा है.. पता नही बाबा को इस बात का इल्म भी है अथवा नहीं.. कि मोदी अछूतपन के शिकार हो गये हैं.. बाबा के सेहत के लिए नेक मशवरा यही होगा कि थोड़ी दूरी बना कर ही रहें... आजकल साधु महात्माओं के बुरे दिन आ गये हैं..आशाराम बापू की काली छाया हर जगह हवा में मड़राने लगी है.
           यह फेंकू मोदी के साथ प्रतियोगिता व प्रतिस्पर्धा ही है कि एक नौ जवान प्रधानमंत्री  कांग्रेसी प्रत्याशी राहुल गांधी को संकल्प लेना पड़ा कि यह भी आजीव कुंवारा रहेगा..मेरा अपना निजीतौर पर मानना है कि फेंकू मोदी से हजार गुणा राहुल अच्छा है बशर्ते वह अपने दादी के पद चिह्नों पर चले.. भादपा के नक्कारेपन और हजारों नाकामियों के बावजूद सच्ची बात तो यह है कि कांग्रेस से भी इस देश की मेहनतकश आवाम व आम आदमी का भी कोई भला होने वाला नहीं है,,वैसे फिर तीसरी बार कांग्रस को देश की सत्ता की बागडौर थमाने का हिमायती नही हूं। पर अध्यादेश को बकवास कहना बेहद मीठा लगा. जहां तक प्रधानमंत्री पद की गरिमा व इज्जत का सवाल है तो मनमोहन जी सब धोकर पी चुके हैं..
                सवाल सिर्फ दंगाई मोदी अथवा फेंक मोदी का नही हैं..देश का खतरनाक व डैंजरस पोजीशन तब हो जैता है जब एक जनरल वी.के. सिंह दंगाइयों के शामी व शानी खड़ा हो जाता है ,, जो अब तक राष्ट्रवादी और ईमानदारी का चोंगा घारण किये हुये था .. यही नहीं इससे यह भी अंदाजा लग जाता है कि किस कदर साम्प्रदायिकता वादियों का शासन और प्रशासन के साथ-साथ सेना में भी घुसपैठ हो चुका है.. यह उस देश की दशा है जो दुनिया में स्वयं को सबसे बड़ा लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्ष कहता है. सच्ची बात तो यह है देश उस सीमा तक आगे बढ़ चुका था जहां कभी भी दंगाइयों द्वारा फौजी तख्ता पलटी भी की जा सकती थी और इस बात का पता लगाना बेहद जरुरी हो चुका है कि हमारी सेना किस हद तक साम्प्रदायिक हो चुकी है और राजनीति में किस हद तक सेना का हस्तक्षेप हो रहा है। बेशक हमारे राजनीतिज्ञ भ्रष्ठ है.. बावजूद एक जनरल द्वारा भ्रष्टाचार के विरुध्द मुहिम चलाने का क्या अर्थ है और क्या मायने है. क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि सेना की सियासी महत्वाकांक्षायें काफी बढ़ गई है.. क्या जनरल वी. के. सिहं का हरियाणा की एक जनसभा में मोदी के साथ शेयर करना संयोग मात्र है अथवा साजिशी पहलू का एक भाग.. यह साधारण घटना नहीं थी बल्कि सोची समझी पहल कदमी और कूटनीति व रणनीति का एक भाग व हिस्सा.. अगर शिरकत का मेकसद सैनिकों के कल्याणार्थ था तो उन्हें मोदी ही सबसे कल्याण कारी राजनीतिज्ञ नजर आये.. दरअसल इसे आप दाल में काला नहीं कह सकते.. सच्चाई तो यह है कि मुकम्मल दाल ही काली है.. जनरल वी.के. सिंह निकलने का जितना प्रयास कर रहे हैं, सियासी दलदल में उलझते व फसते जा रहें हैं.. जनरल ने यह खुलासा किया कि ,, राज्य के कुछ मंत्रियों को सेना स्थीरता के लिए धन देती है, सेना स्थीरता प्रदान करने के लिए मंत्रियों को धन देती है.. अथवा दक्षिण पंथी साम्प्रदायिकता वादी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए .. सवाल पैदा होता है कि सेना कौन होती है धन मुहैया कराने वाली ..इससे सेना का साम्प्रदायिक चेहरा खुल कर सामने आता है.. जनरल ने सुस्पष्ठ मंत्रियों को धन मुहैया कराया । वे हिन्दू थे अथवा मुसलमान? या फिर दोनों.. अगर यह खेल आजादी के बाद से ही बाकायदा खेला जा रहा है तो यह क बेहद संवेदनशील व खतरनाक काम है.. जिसके लिए प्रजातंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. धार्मिक फ़ासिज्म की तरह बढ़ते पांव में बेड़ियां डालनी होनी.
          सेना मुख्यालय ने पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिहं के कार्यकाल में बनी विवादास्पद गोपनीय यूनिट टेक्निकल सपोर्ट डिविजन (टीएसडी) के काम काज पर रक्षा मंत्रालय से उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की है.. अधिकारों के दुरुपयोग के शिकायतों के बाद सेना के स्तर पर बैठायी गई जांच की रिपोर्ट में कई अनियमितताओँ व इसके औचित्य पर भी सवाल उठाये गये हैं.. रक्षा मंत्री ए.के. एटंनी व कई वरिष्ठ अधिकारोयों की फोन पर बातचीत टेप करने को लेकर आरोपों से घिरी इस यूनिट के कामकाज पर लेफ्टिनेटं जनरल विनोद भाटिया की जांच रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय को सौंप दी गयी हैं. मंत्रालय हो अथवा जनरल राष्ट्रहित नाम पर गोपनियता का अर्थ गंदे खेल नही होते, इसलिए तकाजा पार्दशिता का है..
         खास तौर पर पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी के साथ पूर्व सैनिक कल्याण के लिए हुई रैली में जनरल की उपस्थिति की वजह से जनरल वी. के. सिंह को शक के दायरे में आना अस्वाभाविक नहीं.. दरअसल इसमें सीमा पार और जम्मू-कश्मीर में यूनिट द्वारा चलाये गये कुछ अभियान शामिल हैं साथ ही साथ के दुरुपयोग का भी आरोप है प्रश्न यह भी कि इस यूनिट का सबंधं भारत पाकिस्तान और भारत-चीन सीमा पर तनाव में अचानक बढोत्तरी में तो नहीं है . कही हमारे पड़ोसी देशों से न सिर्फ बढ़े तनाव बल्कि खून खराबें का खास मकसद राजनीतिक रुप से कांग्रेस को नाकाबिल और भादपा को काबिल करार दे.. 2014 के आगामी चुनाव में बढ़त दिलाना तो नहीं था .. सच्चाई  चाहे जो हो इतना तो निश्चित है कि पड़ोसियों से पिछले दिनों सबंधों में कड़वाहट घोलने का हर चंद प्रयास किया गया ,  जितनी भी निंदा की जाय थोड़ी होगी. सेना को यह कभी नही भूलना चाहिए कि उसका काम राजनीति करना नहीं, सिर्फ सीमा की चौकसी व रखवारी करना है, न कि किसी राजनीतिक दल को सपोर्ट करना । जनरल वी. के. सिहं ने अपनी टीका टिप्पणियों हथियारों की कमी की बात को उछाल कर न सिर्फ सेना के मनोबल को गिराया है, बल्कि उसकी छवि को साम्प्रदायिक बनाया है। जिससे भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छवि दुनिया में धूमिल हुई है और हमारी धर्म निरपेक्षता को गहरा आघात पहुंचा है.. फेंकू मोदी का काला चेहरा अब भारतीय नागरिक और नौजवानों से छिपा नहीं रहा .. ऐसे में यह कैसे कुबुल किया जा सकता है कि हमारा जनरल मोदी के साम्प्रदायिक कुकृत्य से अनजान था..देश में एक दंगाई पार्टी और मोदी के उभार को एक अपशकुन व खतरे के रुप में चिह्नित किया जा रहा है..प्रख्यात कन्नड़ लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार डॉ यू. आर. अनन्त मूर्ति के इस कथन को हल्के-फुल्के ढ़ंग से नहीं लिया जा सकता कि भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित किये गये प्रत्याशी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी इस पद के लायक नहीं हैं। क्योंकि उनमें मानवता नहीं है.. क्या वी.के सिंह इससे नावाकिफ हैं.. अगर ऐसी बात है, तो फिर वे जनरल के पोस्ट तक कैसे पहुच गये, यह भी सोचने की बात है .. और तो और कन्नड़ साहित्यकार ने राहुल को भी खारिज कर दिया और कहा कि उन्हें इस पद तक पहुंचने के लिए अभी बहुत कुछ सीखना हैं। सनद रहे 2002 के गुजरात दंगे में करीब 1200 लोग मारे गये थे जिनमें अधिकतर मुसलमान थे तब तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्वजनिक रुप से उनकी आलोचना कर पद छोड़ने की सलाह दी थी.. फिर उसी आदमी को पीएम पद का उम्मीदनार बनाना हास्यास्पद  नहीं तो और क्या कहा जायेगा.. और तो और गुजरात दंगों की वजह से ही अमेरिका ने फेंकू मोदी को वीजा देने से स्पष्ट इनकार कर दिया..
                       फेंकू मोदी को लोकसभा चुनाव से पहले कानूनी शिकंजे में कसने के लिए सीबीआई ने इशरत जहां फर्जी मुठभेंड़ मामले की जाचं तेज कर दी है..इस मामले के मुख्य आरोपी पूर्व आइपीएस अधिकारी डी.जी. बंनजारा से राज उगलवाने के साथ ही जाचं की आंच मुख्यमंत्री मोदी के दफ्तर तक पहुंच गई हैं.. और फेंकू मोदी आरोपों के घेरें में हैं मजफ्फरनगर के फिलहाल के दंगों में भादपा का नाम खुलकर सामने आ रहा है.. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विश्व हिन्दू परिषद समेत हिन्दूवादी संगठनों पर राजनीतिक लाभ  के लिए प्रदेश का माहौल बिगाड़ने का आरोप मढ़ा है.. दुसरी तरफ राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भादपा पर निशाना साधा है और किश्तवाड़ा दंगों के लिए दोषी करार दिया है।
            देश में विकल्प हीनता की स्थिति है.. यूपीए व एनडीए सियासी कचरे में बदल चुकी हैं.. मुल्क ता अवाम व्यक्ति नही व्यवस्था को ही खारिज करने के मूड में है ताकि ओल्ड डेमोक्रेसी की जगह न्यू डेमोक्रेसी प्रस्थापित हो.. सामंतो, कॉरपोरेटों ,इजारेदारों नेव साम्राज्यवादियों की जगह मेहनत कशों का राज्य कायम हो , हर तरफ अराजकता व अव्यवस्था का माहौल है वह इस बात के लिए प्रयत्नशील हो.
                                                                  कवि आत्मा
                                                                  7505586748

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

मोदी बम !


कविता :


        मोदी बम
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मोदी बम भाई मोदी बम
फटा मुल्क में मोदी बम !
मोदी बम भाई मोदी बम
फटा बोधि में मोदी बम! 
दिल्ली रानी गाल बजाये
हमे पता था पहले से एकदम!
मोदी बम भाई मोदी बम !
कोई कहताबर्मी मुसलमानों का है काम
कोई लेता इन्डियन मुजाहिद्दीन का नाम!
छाती ठोक के मै कहता हु
यह है मोदी का है काम !
मोदी बम भाई मोदी बम!
समझोता एक्सप्रेस में किसने आग लगाया ?
गोधरा में मुसलमानो किसने कतल मचाया!
हिन्दू महासभा ,भाजपा ,आरएसएस
ये क्या शातिर है कम
रोटी सेके राजनीति का
लालू और पासवान सबकी नजर है चुनाव पर
पार करे भगवन !

बेचारे नितीस कुमार का
कचरों के बीच फुले दम !
मोदी बम भाई मोदी बम!


( दरअसल बोधगया में हिंदुत्ववादी लम्बे समय से शासन व प्रशासन के साथ मिल करके बोधि मंदिर पर अधिपत्य ज़माने का प्रयास करते रहे | मोदी बम द्वारा ये न सिर्फ २०१४ का चुनावी वैतरणी पार  करना चाहते है बल्कि दलित बोद्धो का दमन व् उत्पीडन भी| इसीलिए इन सामंती ब्राम्हणवादीयो से सचेत सजग व होशियार रहने की जरुरत है | इनका उद्देश्य इन्डियन मुजाहिद्दीन का नाम लेकर परदे के पीछे हिंदुत्व को हवा देना है और पुरे देश व  प्रदेश में साम्प्रदायिकता की आग भड़काकर चुनावी लाभ कमाना है )

     :- कविआत्मा