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शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

भारत को एक समाजवादी क्रांतिकारी संविधान की जरुरत है .......

भारत का संविधान एक सामन्ती और पूंजी वादी संविधान है |हमारे देश में अगर अरब पतियों और खरबपतियों की अगर बाढ़ आ गयी है अथवा भारतीय संसद के दोनों सदनों में 400 से अधिक करोड़ पति बैठे हुये है और पुरे पार्लियामेन्ट को हाईजेक कर लिया है तो इसमे हैरत की कोई बात नही है यह हमारे संविधान के मूल भावनाओ के अनुकूल ही है ,इसमे यही होगा |
संविधान निर्माण के समय भी सविधान सभा के कई ऐसे सदस्य थे जिन्होने उसी समय इसकी निंदा करते हुये कहा था " हम दास मनोविर्ति से पश्चिम का अनुसरण कर रहे है यह संविधान हमारे देश के अनुकूल नहीं है" अर्थात यह संविधान उस समय ही खारिज़ कर दिया गया था , दरअसल यह सामंतो और पूंजीपतियों के लिए एकाधिकारो और विशेषाधिकारो पुलिंदा था |
और तो और डॉ भीमराव अम्बेडकर को समाजवाद शब्द से ही नफरत थी क्योकि वे पूँजीवाद और सामंतवाद के पोषक थे ,भारत की 80% जनता गावों में रहती थी पर संविधान में गावों की पूरी तरह से अव्हेलना की गयी है अहनफिर यह तो 5% शहरो में रहने वाले सामंतों,पूंजीपतियों ,सेठ ,साहूकारों का ही लोकतंत्र है आज भी उन्ही का लोकतंत्र है आम आदमी के लोकतंत्र का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता |
ना तुम राष्ट्रपति का चुनाव कर सकते हो ,ना प्रधानमंत्री का चुनाव कर सकते हो ,ना मुख्यमंत्री चुनाव कर सकते हो ,ना राज्यपाल का कर सकते हो ना न्यायधीशों का चुनाव कर सकते हो ये तमाम जनता के जनवादी राजनीतिक अधिकार सविधान ने पार्लियामेन्ट में बैठे करोड़पति प्रतिनिधयों को थमा रखा है | फिर बताओ इस देश में लोकतंत्र कहाँ है ? प्रजातंत्र कहाँ है ? लोकतंत्र किसका है प्रजातंत्र किसका है ? पूँजीपति का या जनता का ...?
अगर देश के उद्योगपति ही उद्यौग चलायेगे ,संसद को संचालित करेगे, सरकार चलायेगे,शासन-प्रशासन ,चिकित्सालय चलायेगे ,विस्वविद्यालय चलाएगे, और सिर्फ अपने ही मुनाफे के लिए तो आम आदमी के लिए इस देश में कौन सी जगह है....? तो क्या मानव संसाधन मात्र है अगर मानव संसाधन मात्र है तो किसका ...उद्योगपतियों का ?
मानव एक सामजिक एवं राजनीतिक प्राणी है वह संसाधन नहीं है संसाधन तो भौतिक एवं प्राकृतिक पदार्थ होते है सवाल सीधा सुस्पष्ट है |वह कोई वास्तु या पदार्थ नहीं है कि आप उसे संसाधन मन ले |वह सिर्फ अपने बारे मे हे नहीं सोचता और ना ही 'आप भला तो जग भला मे विश्वास करता है उसकी चिंता हमेशा एक आदर्श समाज कि स्थापना से है |बावजूद आज यह एक कडवी सच्चाई है कि आदामी को, जिस के सीने मे एक धढक़ता हुआ दिल है वस्तु या पदार्थ रूपी संसाधन मे बदल देने की प्रक्रिया काफी तेज हो गयी है |
यह देश का विकाश नहीं पूंजीपतियो का विकाश है
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भारत के पूँजीपति और कार्पोरेट घरानों ने दुनिया भर मे छोटे बड़े 400 से ज्यादा कम्पनियों का अधिग्रहण किया है और विदेशी कारपोरेट घरानों ने भी भारत कि बाजारों मे पूंजी लगाई है जिसके फल स्वरूप वे इस देश से हर साल मुनाफे के तौर पर 65 अरब डॉलर लुट कर ले जा रहे है बावजूद ये इस देश के खुदरा बाज़ार मे FDI के लिए बैचैन है जिसका पुरे हिंदुस्तान मे लगातर विरोध्जारी है | जिसने प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के भी हाथ पाव बांध रखे है और उनकी विवसता जग जाहिर साबित हों चुकी है और मनमोहन सिंह कि स्थिति धोबी कि कुते जैसी हों गई है जो कि ना घर का होता है और ना घाट का होता है |
भारतीय कारपोरेट घराना सहारा ने न्यूयार्क और लंदन के प्रतिष्टित होटल प्लाज़ा और ग्रोस वेनोर हाउस का अधिग्रहण किया तो दूसरी तरफ ताज हॉटल के मालिक टाटा ने 2008 मे बोस्टन के रिट्ज कार्लटन होटल 17 करोड़ डॉलर मे ख़रीदा और इसी टाटा टी ने सन 2000 मे दुनीया कि सबसे बड़ी चाय कंपनी टोलेती का अधिग्रहण तो किया तो योजना आयोग के उपाध्क्चा मोंटक ने चाय को राष्टीय पेय घोषित करने कि
सिफारिस कर डाली इसका मतलब यह है कि भारतीय पूंजीपतियों के होटलों के अधिग्रहण से ना तो इन भारत के गरीब जनता का पेट भर पाया और नहीं चाय कि प्याश भी बुझ पाई ऐसा इसलिए कि यह भारत के पूंजीपतियओ का विकाश है अवाम का नहीं |
भारत कि पाइनियर दवा निर्माता कंपनी रैनबक्सी ने 2006 मे दुनिया कि बड़ी दवा बनाने वाली कम्पनियो ,इटली कि ग्लेक्सो एस्मिथलाई कि सहयोगी कंपनी एलन , रोमानिया कि सबसे बड़ी दवा कंपनी तेरापिया और बेलजियम कि एथिमएनवी का एक सप्ताह के भीतर अधिग्रहण कर लिया बावजूद भारत कि एक अरब कि आबादी दवा के बिना मर रही है इसलिए कि यह रैनबक्सी का विकाश था आम का नहीं|
2008 मे टाटा ने ब्रिटेन के बेहतरीन कार बनाने वाली कंपनी जगुवार और लैंडरोवर का अधिग्रहण २.३ अरब डॉलर मे कर लिया इससे भारत के गरीबो के घर मे चार पहिये कार नही आ गये कहने का मतलब स्पष्ट यह देश का विकाश नहीं यह पूंजीपतियो का विकाश है |
भारत का प्रमुख उद्योगपति टाटा स्वयं चाहता है कि भारत पाकिस्तान, भारत चीन के बीच दुशमनी कि खबरे बनी रहे ताकि आम जनता का ध्यान उसकी मूल समस्याओ पर ना जाये और पूंजीपतियों द्वार मुल्क के लुट खसोट पर पर्दा डाला जा सके साथ ही साथ चीन पाकिस्तान के यूद्ध के खबरों मे अन्ध राष्ट्रभक्ति मे दुबोये रखा जाय ताकि वह क्रांति व विद्रोह कि बाते ना सोचे |
हॉल ही मे टाटा ने पाकिस्तान को दोयम दर्जे का दुशमन वा चीन द्वार  पाकिस्तान को हथियार आपूर्ति करने वाला दुसमन करार दिया पर साम्राजवादी अमेरिका ने पाकिस्तान, चीन ,भारत तीनों को हाथियार आपूर्ति करते हुये इस छेत्र मे हथियारों कि दौड़ व अंतर महादुपीय यूद्ध उलझाये हुये है फिर भी उसे वह एक यूद्ध उन्मादी नहीं मानता जैसा कि अमेरिका के साथ टाटा के पुराने अदौगिक रिश्ते है |
भारत और पाकिस्तान के बीच चार चार यूद्ध क्रमशः १९४७,१९६५,१९७१,१९९९, और १९६२ मे चीन के साथ ये सभी यूद्ध कांग्रेसीयो ने अपने पडोसी के साथ लड़े फिर एक बार फिर पाकिस्तान को दुशमन करार देने का क्या मायने... एक और यूद्ध ? सच पूछिए तो कारगिल यूद्ध के बावजूद वाजपेयी का काल भारत पाकिस्तान सम्बंधो मे स्वर्ण युग की तरह याद किया जायेगा |
भारत और पाकिस्तान एक ही देश के दो पार्ट है बावजूद हिंदू वा मुस्लमान मजबहबी चरमपंथीयो के लिए इस हकीकत को पचा पाना सहज नहीं दोनों देशो के पूँजीपति वा सम्प्रदायक सामंत नहीं चाहते कि इन दोनों देशो कि जनता एक हों व भाईचारा के साथ रहे इनकी हरचंद कोशिश होती है कि ऐसे वारदातों को अंजाम जाय जिससे दोनों देश के बीच दुसमनी का माहौल हमेश हमेशा के लिए कायम रहे शांति वार्ताये न हों जिससे इनका लुट खसोट वा शोषण लगातार जारी रहे व गरीबी बेरोज़गारी अशिक्षा कुपोषण पर दुश्मनी का पर्दा डाला जा सके और जनता हिंदू और मुस्लमान के नाम पर लड़ती रहे और उनकी चाल व सरमायादारी सदियो तक कायम रहे |
इसीलिए ये बाजारों और भीड़ भरे इलाको मे बम विस्फोट करवाते रहते है ताकि दुश्मनी का अन्त ना हों दोनों देशो कि जनता हिंदू व मुसलिम साम्प्रदायिकता को लात मार एक न हों जाये जैसा कि भारत और पाकिस्तान के युवा और छात्र नवजवान इसे भली भाती समझने लगे है कि इन्ही सामंतो व सम्राज्यवादीयो ने ही हमारे बीच दुश्मनी फैला रखी है ताकि हम अपने हालत से नवाकिफ व बेखबर रहे ऐसे मे अगर क्रिकेट मैच कि बहाली होती है तो सराहनीय है |
**********************किसका देश ****************
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सवाल आपसे ....

आदि वासी ही इस देश के मूल वासी है ,यह आदिवासीयों का ही देश है ,यहाँ आर्य ,ब्राम्हण,मुस्लमान और ईसाई, बाहर से आये इस देश का आर्येकरण ,ब्रम्नीकरण , इस्लामी वा ईसाईकरण हुआ पर आदि वासी समाज ने इन सब से अपने को अलग वा आजाद रखा वै पीछे ( विस्थापित ) होते चले गए पर किसी कि अधीनता नहीं स्वीकारी, इस विकाश शील समाज से जानबूझकर अपने को दूर रखा क्योकि वे इस विकास को वै अपना विनाश समझते है |
आर्य आदि वासियों को अपना गुलाम नहीं बना पाए , ब्राम्हणवादी ब्यावस्था से भी अपनी दुरी बनाये रखी ,मुगलों कि अधीनता भी नहीं स्वीकारी, अग्रेज भी गुलामी कि जंजीर में नहीं जकड़ सके ,उनसे दुरी बनाये रखने में अपना हित व विकाश समझा | आदिवासियों का देश वा उनकी राजधानी "अबुझमाड़ " सच मुच अब तक दुनिया से दूर व अछुता बनी रही वे आजाद रहे ...उनका देश आजाद रहा |
आदि वासी भी चाहते है कि उनकी संस्कृति,परम्पराओ व रीति-रिवाज़ का आधुनिकीकरण हो पर आधुनिक समाज कि असमानता व विसगतियों से बचना चाहते है| सरकार कहती है कि विकाश सब कुछ है पर आदिवासी अपने सामाजिक पर्यावरण को सब कुछ मानते है |
दरअसल यही उनका विकाश है यही उनकी आजादी है वरना आदिवासियों और गैर आदिवासी देश के बीच क्या अन्तर रह जायेगा |
...सवाल पैदा होता है कि सरकार आदिवासीयो के देश व उनकी राजधानी अबूझमाड़ को सेना ,पुलिश कमांडो और अस्त्र शस्त्र के बल क्यों मिलाना चाहती है ?

उनके लिए रोड ,रेल , बिजली ,बसे बिना उनकी मर्ज़ी के क्यों दौडाना चाहती है ?
जवाब दिन के रौसनी कि तरह अस्पष्ट है , जैसा कि उनके घर आगंन खेत ,खलिहान में सोने ,चांदी ,हीरे , और मोतियों के खान है ,लोहा कोयला और बाक्साइट के बडे भंडार है जिन पर देशी और विदेशी पूंजीपतियों कि ललचायी हुई गिद्ध दष्टी है |पूँजीपति,मल्टीनेशनल,कार्पोरेट व पूँजीपति ,राज्य व केंद्र सरकार को मोटा कमीशन थमा कर आदिवासी देश कि प्राकृतिक सम्पदा ,,पर्यावरण का विनाश कर चम्पत हो जाना चाहते है |इसी कारण से वे रेल और रोड का निर्माण कर जंगल का विनाश करने में लगे हुये है |
सवाल पैदा होता है कि हम उन्हें आजाद क्यों ना रहने दे ?
आदिवासी कहते है कि जंगल और पहाड़ हमारा देश है सरकार कहती है हमारा है सोचो ,किसका देश है ? सोचो कौन देसी है कौन परदेशी है , CRPF कोबरा सेना पुलिश अर्धसैनिकबल ,SP, कलेक्टर ,देसी है अथवा आदिवासी कौन किसके जगह में गया है ,|और आप लोगो से आखरी  सवाल ....
सरकार क्या शहरों कि गन्दगी को साफ कर चुकी है जो जंगलो को साफ करने गये है ?
क्या शहर, गावों, के लोगो को रोजगार दे चुकी है जो जंगलो में में विकास और रोज़गार कि बात कर
रही है जो उनकी सरकारी नितियों से दूर रहना पसंद करते है ?

जब शहरों, गावों में रोज़गार ,उचित वेतन , विकाश ,भ्रष्टाचार कि बात करती है तो लाठी कि मार पड़ती है और जब और जब जंगल में आदिवासी सरकारी नीतियों और उसके विकास माँडल से दूर रहना चाहती है तो भी वहाँ गोली चलती है |