शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

भाजपा या भादपा


भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा..कितना अच्छा नाम है.. एक ऐसी राजनीतिक पार्टी जो भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करती हो. और तो और उसका नाम भी भारत की जनता हो यानी जैसा नाम वैसा काम .. पर कोफ्त यह कि यहां तो सबकुछ उल्टा-पुल्टा है..यानी नाम लक्ष्मी पर हकीकत में निराग कंकाल ..जो भी हो ,नाम अगर काम के अनुरुप हो तो अच्छा लगता है, पर अगर काम नाम के विपरीत हो तो नाक भौ सिकुड़ना स्वाभाविक है.. इसीलिए मैं ने भाजपा का नाम बदलकर भादपा कर दिया है.. भादपा अर्थात भारतीय दंगाई पार्टी.. एक ऐसी पार्टी जो न सिर्फ अपने जनप्रतिनिधियों, कैडरों व समर्थक नौकरशाहों से दंगा करवती है, बल्कि सवाल भी दागती है कि आप दंगा रोकने में नाकाम मात्र रहे.. आप को इस्तीफा दे  देना चाहिए.. मतदाता आपकी पार्टी से दूर भाग रहे हैं.
             सर्वप्रथम तो मुझे यही समझ नही थी कि कोई सियासी पार्टी दंगा करा कर कैसे दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो जायेगी.. पर अन्तत मैंने लोहा मान लिया कि दंगा भी बड़े काम की चीज है प्रव्यक्षम किम प्रमाणाम.... अपने फेंकू मोदी को ही देख लें ..फेंकू मोदी ने गुजरात में हैट्रिक लगा दिया ..दिल्ली की तरफ कदम बढ़ा लिया....आडवानी जी यानी आग-पानी को कोई पूछने वाला ही नही हैं.. अब तो भाजपा संसदीय बोर्ड ने भी नके वजीर दृए-आजम के प्रत्याशीपन पर बाकायदा अपनी मुहर जड़ दी है..कहावत बाइस केरेट सही है कि दुल्हन वही जो पिया मन भाये. .. प्रत्याशी वही जो पार्टी मन भाये..दुश्मन के जलने से क्या होता है.. वही होता है जो म़ंजुरे खुदा होता है...यह बात और है कि मोदी प्रधानमंत्री न बन पायें...पर भाजपा की तरफ से मान न मान मै तेरा मेहमान ... भाजपा की तरफ से हिन्दुस्तान के वजीर-ए-आजम की कुर्सी पर आसीन हो ही चुके हैं। मानना पड़ेगा मोदी किस्मत का हाथी है... और तो और हाथी जैसा उसका चेहरा भी काला है...काला यानि कालिख नुमा .. आदमी के खून का रंग वैसे तो लाल होता है. पर दंगाइयों के चेहेरे पर पड़ते ही वह काला हो जाता है।
              दिग्गी बाबू सामंत व राजा ठहरे .... वे मोदी का उपहास उड़ाते हैं और नरेन्द्र मोदी को फेंकू मोदी कह कर तौहीन करते हैं..वे भूल जाते हैं कि मोदी के प्रशंसकों की संख्या लाखों करोड़ों में है.. बाजार गली और सड़कों पर मोदी प्रशंसकों की बाढ़ आ गई है.. जिधर नजर दौड़ाओं झुंड के झंड मोदी प्रशंसक दिखायी पड़ रहे हैं... बर्खुदार एक दिन एक मोदी प्रशंसक से सबका पड़ा .. प्रशंसकों की झुंड से वह बिछुड़गया था .. हांकने लगा मोदी का कोई शानी नहीं... औरतों को सम्मान देना कोई उनसे सीखे.. जन्मजात कुंआरे हैं. अब आप आलोचकों की जुबान तो सी नही सकते....” किसी ने हवा में आवाज उछाल दी. बेचारे मुहब्बत के मारे हैं ”ऐसी अश्लील और भोंडी टिप्पणी मुझे रत्ती भर नहीं भायी.. मैंने चिल्लाकर उसका प्रतिवाद किया.. प्रलाप बंद करो.. मुहब्बत करने वाला कभी दंगाई हो नही सकता है..वह भारतीय दंगा पार्टी का सदस्य हो सकता है.. भाजपाई हो नही सकता...बाते चली तो दुर तक चली गई .. वह एक भद्र महिला पत्रकार थी.. उन्होंने कहा कि मैं फेंकू मोदी के कट्टर समर्थकों में से एक हूं... प्रधानमंत्री के प्रत्याशी के रुप में मोदी हमारी प्राथमिकताओं में से हैं..वे हम ल़ड़कियों की तरह लिपिस्टिक से अपने दोनों होठ रंगते हैं.. औरतों को रिझाना कोई उनसे सीखे...नर-नारी समानता का उनसे बड़ा झुडाबरदार कोई हो ही नही सकता है..उनकी यही खूबी प्रधानमंत्री के सभी उम्मीदवारों पर इक्कीस पड़ती है....मर्दाना का जनाना वेष धारणा करना अगर नर-नारी समानता का घोतक नहीं, फिर क्या है? मेरी तो घोंघी ही बंध गई ... मैं पराजित हो चुका था, क्योकि आजतक मैंने किसी मर्द को लिपिस्टिक से होठ रंगते नहीं देखा था ..नमो नमो का पाठ मैं भी करने लगा.
            और फिर मेरी क्या औकात है. मोदी के समर्थकों में बड़े-बड़े धुरधंर हैं...अन्तराष्टीय योग गुरु बाबा राम देव सरीखे सतं महात्मा मोदी पर मुग्ध हैं.. बाबा राम देव भी पियारे नारी वादी ठहरे.. चादीं सरीखे बालों पर कालिख लगाने का कुछ निहितार्थ हो या न हो पर बाबा का रामलीला मैदान से साड़ी पहन कर चम्पत हो जाना और मोदी समर्थकों में अवतरित होना धर्म निरपेक्ष छवि वालों को अचम्भित किये बिना नही रह सकता.. क्योंकि हम भुल जाते है कि हमारे साधु सतं हमेशा से न सिर्फ नारीवादी रहें है बल्कि हिन्दुत्व के साम्प्रदायिक वायरस से संदुषित भी.. सवाल पैदा होता है कि अब बाबा को कौन याद दिलाये कि जब से वे फेंकू मोदी के समर्थक बने हैं. उनका कद काठी और बौना नजर आने लगा है.. पता नही बाबा को इस बात का इल्म भी है अथवा नहीं.. कि मोदी अछूतपन के शिकार हो गये हैं.. बाबा के सेहत के लिए नेक मशवरा यही होगा कि थोड़ी दूरी बना कर ही रहें... आजकल साधु महात्माओं के बुरे दिन आ गये हैं..आशाराम बापू की काली छाया हर जगह हवा में मड़राने लगी है.
           यह फेंकू मोदी के साथ प्रतियोगिता व प्रतिस्पर्धा ही है कि एक नौ जवान प्रधानमंत्री  कांग्रेसी प्रत्याशी राहुल गांधी को संकल्प लेना पड़ा कि यह भी आजीव कुंवारा रहेगा..मेरा अपना निजीतौर पर मानना है कि फेंकू मोदी से हजार गुणा राहुल अच्छा है बशर्ते वह अपने दादी के पद चिह्नों पर चले.. भादपा के नक्कारेपन और हजारों नाकामियों के बावजूद सच्ची बात तो यह है कि कांग्रेस से भी इस देश की मेहनतकश आवाम व आम आदमी का भी कोई भला होने वाला नहीं है,,वैसे फिर तीसरी बार कांग्रस को देश की सत्ता की बागडौर थमाने का हिमायती नही हूं। पर अध्यादेश को बकवास कहना बेहद मीठा लगा. जहां तक प्रधानमंत्री पद की गरिमा व इज्जत का सवाल है तो मनमोहन जी सब धोकर पी चुके हैं..
                सवाल सिर्फ दंगाई मोदी अथवा फेंक मोदी का नही हैं..देश का खतरनाक व डैंजरस पोजीशन तब हो जैता है जब एक जनरल वी.के. सिंह दंगाइयों के शामी व शानी खड़ा हो जाता है ,, जो अब तक राष्ट्रवादी और ईमानदारी का चोंगा घारण किये हुये था .. यही नहीं इससे यह भी अंदाजा लग जाता है कि किस कदर साम्प्रदायिकता वादियों का शासन और प्रशासन के साथ-साथ सेना में भी घुसपैठ हो चुका है.. यह उस देश की दशा है जो दुनिया में स्वयं को सबसे बड़ा लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्ष कहता है. सच्ची बात तो यह है देश उस सीमा तक आगे बढ़ चुका था जहां कभी भी दंगाइयों द्वारा फौजी तख्ता पलटी भी की जा सकती थी और इस बात का पता लगाना बेहद जरुरी हो चुका है कि हमारी सेना किस हद तक साम्प्रदायिक हो चुकी है और राजनीति में किस हद तक सेना का हस्तक्षेप हो रहा है। बेशक हमारे राजनीतिज्ञ भ्रष्ठ है.. बावजूद एक जनरल द्वारा भ्रष्टाचार के विरुध्द मुहिम चलाने का क्या अर्थ है और क्या मायने है. क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि सेना की सियासी महत्वाकांक्षायें काफी बढ़ गई है.. क्या जनरल वी. के. सिहं का हरियाणा की एक जनसभा में मोदी के साथ शेयर करना संयोग मात्र है अथवा साजिशी पहलू का एक भाग.. यह साधारण घटना नहीं थी बल्कि सोची समझी पहल कदमी और कूटनीति व रणनीति का एक भाग व हिस्सा.. अगर शिरकत का मेकसद सैनिकों के कल्याणार्थ था तो उन्हें मोदी ही सबसे कल्याण कारी राजनीतिज्ञ नजर आये.. दरअसल इसे आप दाल में काला नहीं कह सकते.. सच्चाई तो यह है कि मुकम्मल दाल ही काली है.. जनरल वी.के. सिंह निकलने का जितना प्रयास कर रहे हैं, सियासी दलदल में उलझते व फसते जा रहें हैं.. जनरल ने यह खुलासा किया कि ,, राज्य के कुछ मंत्रियों को सेना स्थीरता के लिए धन देती है, सेना स्थीरता प्रदान करने के लिए मंत्रियों को धन देती है.. अथवा दक्षिण पंथी साम्प्रदायिकता वादी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए .. सवाल पैदा होता है कि सेना कौन होती है धन मुहैया कराने वाली ..इससे सेना का साम्प्रदायिक चेहरा खुल कर सामने आता है.. जनरल ने सुस्पष्ठ मंत्रियों को धन मुहैया कराया । वे हिन्दू थे अथवा मुसलमान? या फिर दोनों.. अगर यह खेल आजादी के बाद से ही बाकायदा खेला जा रहा है तो यह क बेहद संवेदनशील व खतरनाक काम है.. जिसके लिए प्रजातंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. धार्मिक फ़ासिज्म की तरह बढ़ते पांव में बेड़ियां डालनी होनी.
          सेना मुख्यालय ने पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिहं के कार्यकाल में बनी विवादास्पद गोपनीय यूनिट टेक्निकल सपोर्ट डिविजन (टीएसडी) के काम काज पर रक्षा मंत्रालय से उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की है.. अधिकारों के दुरुपयोग के शिकायतों के बाद सेना के स्तर पर बैठायी गई जांच की रिपोर्ट में कई अनियमितताओँ व इसके औचित्य पर भी सवाल उठाये गये हैं.. रक्षा मंत्री ए.के. एटंनी व कई वरिष्ठ अधिकारोयों की फोन पर बातचीत टेप करने को लेकर आरोपों से घिरी इस यूनिट के कामकाज पर लेफ्टिनेटं जनरल विनोद भाटिया की जांच रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय को सौंप दी गयी हैं. मंत्रालय हो अथवा जनरल राष्ट्रहित नाम पर गोपनियता का अर्थ गंदे खेल नही होते, इसलिए तकाजा पार्दशिता का है..
         खास तौर पर पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी के साथ पूर्व सैनिक कल्याण के लिए हुई रैली में जनरल की उपस्थिति की वजह से जनरल वी. के. सिंह को शक के दायरे में आना अस्वाभाविक नहीं.. दरअसल इसमें सीमा पार और जम्मू-कश्मीर में यूनिट द्वारा चलाये गये कुछ अभियान शामिल हैं साथ ही साथ के दुरुपयोग का भी आरोप है प्रश्न यह भी कि इस यूनिट का सबंधं भारत पाकिस्तान और भारत-चीन सीमा पर तनाव में अचानक बढोत्तरी में तो नहीं है . कही हमारे पड़ोसी देशों से न सिर्फ बढ़े तनाव बल्कि खून खराबें का खास मकसद राजनीतिक रुप से कांग्रेस को नाकाबिल और भादपा को काबिल करार दे.. 2014 के आगामी चुनाव में बढ़त दिलाना तो नहीं था .. सच्चाई  चाहे जो हो इतना तो निश्चित है कि पड़ोसियों से पिछले दिनों सबंधों में कड़वाहट घोलने का हर चंद प्रयास किया गया ,  जितनी भी निंदा की जाय थोड़ी होगी. सेना को यह कभी नही भूलना चाहिए कि उसका काम राजनीति करना नहीं, सिर्फ सीमा की चौकसी व रखवारी करना है, न कि किसी राजनीतिक दल को सपोर्ट करना । जनरल वी. के. सिहं ने अपनी टीका टिप्पणियों हथियारों की कमी की बात को उछाल कर न सिर्फ सेना के मनोबल को गिराया है, बल्कि उसकी छवि को साम्प्रदायिक बनाया है। जिससे भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छवि दुनिया में धूमिल हुई है और हमारी धर्म निरपेक्षता को गहरा आघात पहुंचा है.. फेंकू मोदी का काला चेहरा अब भारतीय नागरिक और नौजवानों से छिपा नहीं रहा .. ऐसे में यह कैसे कुबुल किया जा सकता है कि हमारा जनरल मोदी के साम्प्रदायिक कुकृत्य से अनजान था..देश में एक दंगाई पार्टी और मोदी के उभार को एक अपशकुन व खतरे के रुप में चिह्नित किया जा रहा है..प्रख्यात कन्नड़ लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार डॉ यू. आर. अनन्त मूर्ति के इस कथन को हल्के-फुल्के ढ़ंग से नहीं लिया जा सकता कि भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित किये गये प्रत्याशी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी इस पद के लायक नहीं हैं। क्योंकि उनमें मानवता नहीं है.. क्या वी.के सिंह इससे नावाकिफ हैं.. अगर ऐसी बात है, तो फिर वे जनरल के पोस्ट तक कैसे पहुच गये, यह भी सोचने की बात है .. और तो और कन्नड़ साहित्यकार ने राहुल को भी खारिज कर दिया और कहा कि उन्हें इस पद तक पहुंचने के लिए अभी बहुत कुछ सीखना हैं। सनद रहे 2002 के गुजरात दंगे में करीब 1200 लोग मारे गये थे जिनमें अधिकतर मुसलमान थे तब तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्वजनिक रुप से उनकी आलोचना कर पद छोड़ने की सलाह दी थी.. फिर उसी आदमी को पीएम पद का उम्मीदनार बनाना हास्यास्पद  नहीं तो और क्या कहा जायेगा.. और तो और गुजरात दंगों की वजह से ही अमेरिका ने फेंकू मोदी को वीजा देने से स्पष्ट इनकार कर दिया..
                       फेंकू मोदी को लोकसभा चुनाव से पहले कानूनी शिकंजे में कसने के लिए सीबीआई ने इशरत जहां फर्जी मुठभेंड़ मामले की जाचं तेज कर दी है..इस मामले के मुख्य आरोपी पूर्व आइपीएस अधिकारी डी.जी. बंनजारा से राज उगलवाने के साथ ही जाचं की आंच मुख्यमंत्री मोदी के दफ्तर तक पहुंच गई हैं.. और फेंकू मोदी आरोपों के घेरें में हैं मजफ्फरनगर के फिलहाल के दंगों में भादपा का नाम खुलकर सामने आ रहा है.. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विश्व हिन्दू परिषद समेत हिन्दूवादी संगठनों पर राजनीतिक लाभ  के लिए प्रदेश का माहौल बिगाड़ने का आरोप मढ़ा है.. दुसरी तरफ राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भादपा पर निशाना साधा है और किश्तवाड़ा दंगों के लिए दोषी करार दिया है।
            देश में विकल्प हीनता की स्थिति है.. यूपीए व एनडीए सियासी कचरे में बदल चुकी हैं.. मुल्क ता अवाम व्यक्ति नही व्यवस्था को ही खारिज करने के मूड में है ताकि ओल्ड डेमोक्रेसी की जगह न्यू डेमोक्रेसी प्रस्थापित हो.. सामंतो, कॉरपोरेटों ,इजारेदारों नेव साम्राज्यवादियों की जगह मेहनत कशों का राज्य कायम हो , हर तरफ अराजकता व अव्यवस्था का माहौल है वह इस बात के लिए प्रयत्नशील हो.
                                                                  कवि आत्मा
                                                                  7505586748

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