मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

ओल्ड डेमोक्रेसी बनाम न्यू डेमोक्रेसी


 सामंती व पूंजीवादी जनवाद के बाद जनता का जनतंत्र या जनता का जनवाद आता है।  यह प्रजातत्रं का विकसित व डेवलप रूप  है | सामंतों के बीच की समानता, सामन्ती जनवाद कहलाता है.. जबकि पूजीपतियों के बीच की समानता पूंजीवादी जनवाद डेमोक्रेसी या रिपब्लिक, कानून शब्द का जन्म यूनानी दर्शन या दार्शनिकों द्वारा हुआ.. जिसके लिए हम सुकरात, प्लेटों और अरस्तू  के ऋणी हैं | पर इनको ठोस व मूर्त रुप देने का काम यूरोपीय देशों इंगलैंड, फ्रांस व जर्मनी में हुआ |  .. इसको यो भी कहा जा सकता है कि अनुवर्त्तियों के बिना परवर्त्तियों का क्या महत्व ? हमारे देश में सामंतों व पूंजीपतियों का ही प्रजातंत्र है . अभी यहाँ प्रजा का प्रजातंत्र स्थापित नहीं हुआ है ...सवाल पैदा होता है  कि प्रजा का प्रजातंत्र कब और कैसे स्थापित होगा ?
       जब स्वतंत्रता, समानता व भाईचारे की बात आती है, तो एक क्षण के लिए हम भूल जाते है कि स्वतंत्रता, समानता व भाईचारे का मतलब घोड़े अथवा गधे बीच समानता सम्भव नहीं है |.. समानता, स्वतंत्रता व भाईचारे भी सापेक्षिक शब्द हैं. ये निरपेक्ष नहीं होते, जैसे थेलीज, एनेक्जिमेन्डर, एनेक्जीमेनिज, पारथागोरस, हेरेक्लाइट्स, हेगल, ल्यूसियस ,डिमाक्रिटस, एपीक्यूरस टोमस ,कम्पानेल, सेंट साइमन, रार्बट ओवन ,चार्ल्स फुरिये  के बिना  फ़ायरवॉक व कार्ल मार्क्स का अस्तित्व सम्भव नहीं है.. दरअसल ये विचारधाराएं जुडी हुई और अन्तर सम्बंधित है | इसी प्रकार विभिन्न प्रजातंत्रों का भी अपना कल और क्रम है इस क्रम को तोड़ने का दम सिर्फ क्रांतियों में होती है |
       सच पूछिये तो प्रजातंत्र की जननी इंग्लैडं ही है. जहां एलिजाबेथ काल में संसद नाम की संस्था पैदा हुई.. जिसका षड़यंत्रों, संघर्षों , शोषण व दमन की छाया में कच्छपरीति से सृजन व विकास हुआ. अपने उत्पत्ति काल में यह सामंती प्रजातंत्र था. 1603 ई. में स्काटलैंड का शासक इंग्लैडं के राजसिंहासन पर जेम्स प्रथम के नाम से सत्तारुढ़ हुआ था.. जिसके सत्ता सीन होते ही संसद के साथ संघर्ष शुरु हो गया. जिसकी समाप्ति 55 साल बाद 1688 के गौरवपूर्ण क्रांति के सम्पन्न होने के साथ ही हुई.. जिससे एक नये युग का सूत्रपात हुआ.. इस प्रकार सत्रहवी शताब्दी में इंगलैंड में संसद का विकास हुआ | यह वह समय था जब सामंतवाद के गर्भ में पूंजीवाद पल रहा था | यही नहीं प्रोटेस्टेटों और कैथोलिकों के बीच के अन्तर्विरोध चौड़े होते चले जा रहे थे| 1603 में वाटसन के नेतृत्व में संसद भवन को बारुद से उड़ाने की योजना बनी | चिनगारी लगाने का काम अनुभवी सैनिक गार्ड फाक्स के जिम्मे था . अन्ततोगत्वा जिसका भंडाफोड़ हो गया... गार्ड फाक्स तहखाने में आग लगाने के लिए तैयार रंगे हाथों पकड़ा गया.. फाक्स और उसके साथियों को प्राण दण्ड दिया गया | बावजूद  पूंजीवादी प्रजातंत्र का शिशु जन्म ले चूका था |
        राजतंत्र आहिस्ते-आहिस्ते कमजोर व पूंजीवाद हावी होने लगा तथा द्वितीय संसद 1612-1620 .. इस बार संसद ने राजा तथा उसके मंत्रियों पर अभियोग चलाने का अधिकार हासिल कर लिया था .. सामंती जनवाद के खिलाफ; यह पूंजीवादी प्रजातंत्र की जीत थी. तृतीय तथा चतुर्थ संसद 1621-1622 और 1624. संसद ने कोषाध्यक्ष पर अभियोग चलाया. सन 1625 में जेम्स प्रथम की मृत्यु हो गयी.. इसके साथ संसद भी भंग हो गयी.. संसद की सहायता से इसके पुत्र चार्ल्स प्रथम ने 1625-1629 तक शासन किया, 1629-1640 तक उसने बिना संसद की सहायता के ही राज किया |  चार्ल्स ने स्वेच्छाचारी शासन स्थापित की | फलत: 30 जनवरी 1649 को संसद ने चार्ल्स को प्राण दंड की सजा दी.. बावजूद ये राजतंत्र का खात्मा नही था; न ही प्रजातंत्र की स्थापना ही.. पर निश्चित ही यह दुनिया में प्रजातांत्रिक युग की शुरुआत की दिशा में एक महत्वपूर्ण  कदम था |  दुनिया के दूसरे देशों में भी ऐसी घटनायें होने लगी | 1793 में लुई फ्रांस के राजा 16 वें को भी फासी पर लटका दिया . यह पूंजीवादी प्रजातंत्र के उदय का काल था | पूंजीपति व मध्यम वर्ग संसद के सृजन के साथ-साथ; संसद पर काबिज हो रहा था. इसके साथ ही राजनीति और दर्शन के क्षेत्र में पूंजीवादी प्रजातंत्र व समाजवाद का भ्रूण पलने लगा था. नीदरलैण्ड ,16 वीं सदी, ब्रिटेन 17 वीं सदी, फ्रांस 18 वीं सदी में पहली बार बुर्जुआ क्रांतियों के फलस्वरुप पूंजीवाद ने सांमतवाद पर विजय हासिल की. भू-दास प्रथा ढ़ह गयी. निरंकुश राजाओं के तख्तें पलट दिये गये | पूंजीपतियो का प्रजातंत्र दुनिया में स्थापित हुआ |
      इस बीच सर्वहारा वर्ग ने भी सिर्फ आर्थिक मांगे, वेतन, कार्यदिवस छोटा करने की मांगे, अपितु राजनीतिक स्वतंत्रताओं के लिए भीषण संधर्ष आरम्भ कर दिये. फ्रांसिसी नगर लियोन के मजदूरों और दस्तकारों ने 1831और 1834 में अपने जीवन परिस्थितियों को बेहतर बनाने के साथ फ्रांस में जनतंत्र घोषित करने की मांग की..19 वीं सदी के चौथे पांचवे दशकों में मजदूर चार्टिस्ट आदोंलन के आर्थिक और राजनीतिक दोनों ही उद्देश्य थे ...  आन्दोलन सही  मायने में सर्वहारा  जनसाधारण का राजनीतिक रुप से संगठित क्रातिकारी आंदोलन था..जर्मनी के साइलेशिया के  बुनकरों ने 1844 में एक बड़ी कारवाई की .इन्होंने बुर्जुवा व्यवस्था के खिलाफ जर्मन सर्वहारा के वर्गसंघर्ष  का सूत्रपात किया और य़ूरोपीय सर्वहारा वर्ग की क्रांतिकारी कारवाईयों पर प्रभाव डाला.
       5 मई 1818 में काल मार्क्स का जन्म हो चुका था जिसका बाप हेनरीक मार्क्स उसका लालन पालन वाल्तेयर, रुसो, लेसिंग सरीखे विद्धानो  तथा य़ूरोपिय समाजवादियों के आधार पर कर रहा था.. 1844 में पहली बार मार्क्स –एंगेल्स  पेरिस में मिले .. 1847 में मार्क्स कम्यूनिस्ट लीग से जुड़ गये.. 1848 में कम्यूनिस्ट पार्टी का घोषणा पत्र आया.. जिसका केन्द्र बिन्दू था पूंजीवाद के गर्भ में ही उसके पतन की भौतिक परिस्थितियां निर्मित होती हैं .. उन्होंने सर्वाहारा वर्ग को पुरानी प्रणाली को नष्ट करने में एक समर्थ शक्ति के रुप में निरुपित किया.. इसके साथ एक सामाजिक प्रणाली के दूसरे सामाजिक प्रणाली द्वारा नियम संगत प्रति स्थापना को निरुपित किया.. हेगेल के द्वन्दवाद और फायर बाख के भौतिकवाद ने मार्क्सवादी दर्शन के प्रस्थापना बिन्दू का काम किया. फायर बाख का कहना था कि प्रकृति की व्याख्या रहस्य व विचारों का सहारा लिये बिना वह जो वास्तव में है किया जा  सकता है | पर यूनानी दर्शन को खंगालने से पता चलता है कि मार्क्स से पहले मार्क्सवाद पैदा हो चूका था |
  लेनिन ने 1898 में रुसी सामाजिक जनवादी मजदूर पार्टी की स्थापना की थी.. 1917 में ठीक 19 साल बाद रुस समाजवादी देश बन गया .1921 में चीन में कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई.1949 में 28 साल बाद चीन में भी नव जनवादी देश बना. 1925में भारत में कम्युनिस्ट  पार्टी की स्थापना हुई. 88 साल बाद भी भारत में समाजवाद, नवजनवाद अथवा जनता का जनवाद या फिर मेहनतकश जनता का प्रजातंत्र क्यों नही कायम हो पाया और कैसे? कब कायम होगा ? तथा प्रजा के प्रजातंत्र की क्या जिम्मेदारी व कार्यभार होंगे?
          दरअसल सच्ची बात यह थी कि भारत के सभी कम्युनिस्ट ब्राम्हण थे.. अर्थात  कुलीन एलीट व अभिजात वर्ग से आये थे.. रिवोल्यूशन उनका रोमांश था; न कि जरुरत | जिसकी पूर्ति अल्ट्रा वाम ने की.. ससंदीय व नकली साम्यवादियों की तुलना रुसी मेनशेविकों व चीनी  कोमितांड़ से करनी चाहिए.. यही नहीं, इन्होंने भारत के  सामाजिक भौतिकवाद की हमेशा अवहेलना की.. तथा सेफ्टि बाल्व का काम किया, ताकि यथा स्थिति कायम रहे. आज भी ये इसी भूमिका में हैं ये क्रांति के नाम पर चीन व रुस का व्याख्या भर करते रहें | भारत में क्रांति की बात इहोंने कभी सोची ही नहीं और तो और इन्होंने सर्वाहारा वर्ग को भी भारतीय संदर्भ में परिभाषित नहीं किया.. आदिवासी, दलितों पिछड़ों, छात्रों व नौजवानों को सर्वहारा नहीं माना.. इन्हे  यह भी याद नहीं आया कि भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, अशफाक उल्ला छात्र व नौजवान थे.इन्होंने कल कारखानों के मजदूरों, भूमिहीन किसानों व कृषि मजदूरों तक अपने को सीमित रखा.. इन्हें यह भी नजर नहीं आया कि भारत भौगोलिक रुप से एक नही; तीन देश है जंगल समतल और शहर .. इनके बीच इस सवाल को लेकर भी खेमेबाजी रही कि भारत में क्रांति का क्या स्वरुप होगा ? यानी जनवादी या समाजवादी ?  साथ ही साथ विभिन्न राष्ट्रीयताओ को भी भूल गए | क्रांति  की जगह इन्होने चुनाव व संसद को ही मूल माना |
       इन्होंने गांधीवाद, अम्बेडकरवाद , लोहियावाद को क्रांति के लिए उपयोगी नहीं माना न ही मार्क्सवाद कि बॉट से तौलने की कोशिश की |  जबकि आवश्यकता इस बात की है कि इन्हें भी क्रांतिकारी कतार में शामिल किया जाय.. यही नही इन्होंने दीर्ध कालीन जनयुद्ध के नाम पर क्रांति के लिए कोई फौरी योजना पेश नहीं की.. ये तो यह भी नहीं समझ पाये कि बड़े पैमाने पर गरीब व बेरोजगार का पैदा होना पूंजीवादी क्रांति है.. जिसे जनविरोधी होने की वजह से जनता समाजवादी क्रांति में बदल देगी | वैसे  क्रांति शुरु हो चुकी है जो अब दिखाई भी पड़ने लगी है .. जंगल में क्रांति हो रही है समतल में भी क्रांति हो रही है, तथा शहरों व महानगरों में भी.. गांव दरिद्र हो रहा हैं. ग्रामीणों का ऐसा महसूस होना , क्रांति है.. शहरों व महानगरों में भी  नौजवान बडे पैमाने पर बोरोजगार व कंगाल हो रहें हैं; यह एक क्राति है उन्हें अब एहसास होने लगा हैं कि बेरोजगारी व गरीबी का असली कारण कारपोरेट घराने व पूंजीपति वर्ग ही है.. आज देश मं कारपोरेट व पूंजीवादी प्रजातंत्र हैं.. राष्ट्र की न सिर्फ 70 प्रतिशत सम्पत्ति पर तकरीबन आठ हजार पूंजीपति व कारपोरेट काबिज हैं बल्कि विधायिका कार्यपालिका व न्यायपालिका भी इन्हीं की मुठ्टी मॆं है व राष्ट्र की साडी संपत्ति पर जमें हुए हैं..इनकी सत्ता को पलट कर ही प्रजा का प्रजातंत्र कायम हो सकता है |
     सारे के सारे  रोजगारो पर अपना एकाधिकार जमा रखा  है, सारा देश बेरोजगार बिना धंधा का हो चुका है पहले तो ये पसीना पीते थे  अब खून पी रहे हैं . देश के नागरिक कुपोषण के शिकार हैं महिलाओं के शरीर में खूनपानी नहीं रह गया है.. शिक्षित युवक रोजगार के लिए भटकता चल रहा हैं .. मानव नहीं  पूंजीपती  मशीनों को तरजीह दे रहा हैं .. निजी आर्थिक मुनाफा के आगे; वह सामाजिक व  राष्टीय बेनेफिट को भूल चुका है.. मुठ्ठी भर कारपोरेटों व मल्टीनेशनल के विकास को ये देश  व राष्ट्र का विकास समझते है ..भारत एक कम्पनी में तब्दील हो चुका है.. ऐसे में सिर्फ एक ही सास्ता शेष  रह गया है कि क्रांतिकारियों के नेतृत्व में पूंजीपतियों के ससंदीय प्रजातंत्र को जड़ मूल से उखाड़ फेका जाय.. पूंजीपतियों  का प्रजातंत्र नहीं ; नवजनवादी जनतंत्र ,,प्रजा  का प्रजातंत्र  बहाल किया जाये, इसके लिए  क्रांतिकारी यानी नवजनवादी समाजनादी संविधान की जरुरत है; जो समाजवाद के वसूलों व सिद्दातों पर आधारित हो ,, इस दुनीया  में कोई मालिक कोई  मजदूर क्यों हो,, ऐसा धक्का मारो की यह दीवार ढ़ह जाए यारों.. हमारे देश में संसद की नीवं  सामंती व पूंजीवादी अंग्रेजों ने  रखी थी | जिसने सामंती व पूंजीवादी संविधान के साथ इसके संचालन के लिए शासन व प्रशासन खड़ा किया.. पीएम से लेकर पंचायत तक दिल्ली से लेकर गांव की गलियों तक इसने सरकार के नाम  पर शोषण की  एक सीढ़ी खड़ी  कर दी थी  | .. एलेक्शन ने जनप्रतिनिधी व मंत्रियों के नाम पर करोंड़ों कमीशन खोर पैदा किये.. रिवोल्यूशन का मतलब इस सीढ़ी को समाप्त करना है, जिन्हें नौकरी नहीं उन्हें नौकरी देनी हैंजिन्हें जमीन नहीं उन्हें जमीन देना हैं.. यहां नौजवानों के पास नौकरी नहीं हैं किसानो के पास जमीन नहीं हैं.. मजदूरों के पास खेत और कारखानें नहीं हैं.. दुकानदार की अपनी दुकान नही हैं.. रिक्शा चालक का अपना रिक्शा नहीं है.. डॉक्टर का  अस्पताल नहीं हैं प्रबंधक उसका मालिक  है .प्रजा का प्रजातंत्र या  न्यू डेमोक्रेसी में इन्हें स्वामित्व प्रदान करेगा | स्कूल का मालिक कोई प्रबंधक कैसे हो सकता है ? स्कूल के असली मालिक तो टीचर और विद्यार्थी ही  है .. ठेकेदारी प्रथा कि भला क्या जरूरत ?. जनता ही खुद जनप्रतिनीधि होगी. कानून ऊपर से नहीं नीचे से बनेगा | .. जनता स्वंय अपने लिए कानून बनायेगी.. पूंजीपति व सामंतों के राज में पूंजीपति व सामंत कानून बनाते है |मजदूरों , कर्मचारियों की छटनी करते हैं | प्रजा के प्रजातंत्र में मजदूर व कर्मचारी पूंजीपतियों की छुट्टी व छटनी कर देगें. सिर्फ राज्य होगा सरकार नाम की कोई चीज व संस्था नहीं रहेगी.|.नागरिक सामाजिक शासन व प्रशासन कायम होगा |  उच्चतम विकास के साथ राज्य व वर्ग का भी लोप हो जायेगा. प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,राज्यपाल, का चुनाव प्रजा करेगी जनप्रतिनिधि नहीं.. पार्लियामेंट तो होगी पर पार्टी लेश होगी.. श्रम ही सिक्का होगा.. श्रम करने वाले को सब कुछ उपलब्ध होगा.शोषको का स्वामित्व समाप्त कर जनता का स्वामित्व कायम किया जायेगा |
    न्यू डेमोक्रेसी अथवा प्रजा के प्रजातंत्र में शोषको का सितारा डुबो दिया जायेगा | अनाज सिर्फ खाने के लिए होगा; ब्यापार के लिए नहीं; इसलिए महंगाई अपने आप समाप्त हो जायेगी | राज्य में सभी नागरिको की हिस्सेदारी व भागीदारी सुनिश्चित होगी |  हम सभी सेवाओ को राष्ट्रीय सेवा घोषित करेंगे |राज्य के सभी नागरिक बिना किसी भेद भाव के वेतनभोगी होंगे जनसँख्या का पूर्ण नियोजन होगा | मानसिक और शारीरिक श्रम के बीच समानता कायम की जायेगी | हम किसी की जमीं छीनने नहीं जा रहे;बल्कि आवस्यकता होने से जमीन देंगे | किसान अगर अपने खेत में काम कर रहा है और अनाज उपजा रहा है ; तो वह अपना काम नहीं बल्कि राष्ट्र का काम कर रहा है; हम उसे वेतन देंगे | माध्यम वर्ग का कार्पोरेट और कैप्टिलिस्ट क्लास शोषण कर रहा है , हम उसका धन दो सालो में दुगुना कर देंगे उसे राष्ट्रीय पूंजीपति क़तर में खड़ा होने का अवसर प्रदान करेंगे | प्रजा का प्रजातंत्र विश्व बैंक तथ आईएमऍफ़ के आगे हाथ नहीं पसारेगा | हमें अपनी प्रजा पर भरोसा है और प्रजा को हम पर | हम उसी से लेकर उसी को देकर समाजवाद का निर्माण करेंगे इस प्रकार प्रजा के प्रजातंत्र की स्थापना होगी |
 सुना है जंगल में माओवादी आ गये हैं. आदिवासियों से उनकी अच्छी पटती है, जंगल में अपने ढंग का वे विकास कर रहें हैं हम उनके साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे | जंगल में माओवाददियों  को रहने देंगे .जंगल में माओवाद होगा.| क्योकि जंगल के लोग उन्हें चाहते और पसंद करते है |
     हमारे गावं गरीब हो रहें है.100 बीघे के किसान आज पांच बीधा का किसान बन गये है, गरीबों का दर्शन है गांधी वाद गांव में पिछड़े रहते है ; पिछड़ो का  दर्शन है लोहियावाद .. गांव में चमार, दुसाध दलित जातिया रहती  हैं .. दलितों का प्यारा दर्शन है अम्बेडकरवाद .. गांवों में हमारे तीनों दर्शन जिनका मूल मंत्र स्वदेश स्वालम्बन व स्वराज है, तीनों दर्शन एक साथ फूलेगें फलेगें |  समाजवाद के रास्ते पर हम मिल के चलेंगे  हमारे जो भाई शहरों में आ चुके हैं. वे सम्पत्ति वाले है उनकी पूंछ गांवतक फैली हुई है इनकी चोटी और पूंछ साम्राज्यवादियो ने पकड़ रखी है | क्रन्तिकारी संविधान द्वारा पूंछ और चोटी को काट कर प्रजा के हवाले कर दिया जायेगा |  शहर व महानगर वैसे भी पूंजीपति व पैसे वालों के ही होते हैं .. शहरों में मार्क्सवाद चलेगा |
     भौगोलिक दृष्टि से भारत एक नहीं तीन देश हैं.. जंगल में ज्यादा समानता हैं,, वहां साम्यवाद चलेगा .. समतल व गांव  में खेती, पशुपालन व बागवानी होती हैं यहां नवजनवाद आयेगां यहाँ प्रजा का प्रजातंत्र कायम होगा | शहर कल-कारखानों व बाजारों के लिये जाना जाता हैं , इसी लिए यहां समाजवाद चलेगा | समाजवाद का युद्ध शहरो और महानगरो में ही लड़ा जायेगा अभी वैचारिक क्रांति सुरु हो चुकी है जो २०१७ तक सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति में बदल जायेगी | इस प्रकार भारत में त्री-स्तरीय क्रांति सम्पन्न होगी.  और 2025 तक प्रजा का प्रजातंत्र अथवा न्यू -डेमोक्रेसी कायम हो जाएगा  |

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