गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

क्रांतिकारियों की एकता ही क्रांति का रास्ता :

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      भारत के क्रांतिकारी आन्दोलन के इतिहास में 24 नवम्बर 2011 ब्लैक डे, शहादत दिवस व क्रांतिकारी की एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1 जुलाई 2010 को अमेरिकी नव साम्राज्यवाद और उसके दलालों ने सी0 पी0 आई माओवादी के प्रवक्ता काॅमरेड आजाद को इसी प्रकार मार डाला था।

      सी0 पी0 आई0 माओवादी के सर्वोच्च लीडर काॅमरेड कोटेश्वर राव की हत्या की साजिश; माओवादी क्रांतिकारी संघर्ष के लिए गहरा आघात है। काॅमरेड कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी जो जनता और पार्टी के बीच प्रह्लाद, रामजी, विमल, आदि नामों से प्रसिद्ध थे। वह एक अथक योद्धा थे, जिसने 37 वर्षो तक बिना विश्राम किये’ क्रांति के मशाल को जलाये रखा।

      कोटेश्वर राव का जन्म आंध्र प्रदेश उŸारी तेलंगाना, करीम नगर जिले के पेड्डापल्ली टाउन मे 1954 में हुआ था। इनके पिता वेंकटैया एक स्वतंत्रता सेनानी थे। जबकि माँ मधुरमा प्रगतिशील विचारोें की गृहणी थी। कोटेश्वर राव ाक दिल बवचपन से ही देश प्रेम और उत्पीडि़त जनता के प्रति दया व करूणा से ओत-प्रोत था। 1969 में कोटेश्वर राव ने पृथक तेलंगाना आंदोलन में भाग लिया। जब ये पेड्डापल्ली टाऊन हाईस्कूल के छात्र थे...तभी नक्सल बाड़ी और श्री काकुलम के गौरवमयता से प्रेरित हो। क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े उस समय ये एस0 आर0 आर0 काॅलेज करीम नगर ग्रेजुएट के छात्र थे। 1974 में पार्टी के एक सक्रिय सदस्य के रूप में काम करना शुरू कर दिया। इमर्जेन्सी में ये जेल गये, आपातकाल की समाप्ति के बाद गृह जिले करीम नगर में पार्टी आर्गनाइजर की तरह काम करना शुरू किया।

      पार्टी के काल ’’गांव चलो अभियान’’ का इन्होंने सफल नेतृत्व किया तथा किसानों के साथ सम्बन्ध विकसित किया। 1978 में जगतीयाल जय यात्रा को उभारने में प्रमुख भूमिका निभाया। कोटेश्वर राव अदीलाबाद करीम नगर सी0 पी0 आई0 एम0 एल0 ज्वाइन्ट कमेटी के सदस्य चुने गये। 1979 में जब यह कमेटी विकसित हुई तब ये करीम नगर डिस्ट्रीक्ट कमेटी के सेक्रेटी निर्वाचित हुए और जिम्मदारियां सम्भाली। 1985 आन्ध्र प्रदेश राज्य कमेटी के निर्माण में कठिन भूमिका निभाई व सकेट्री चुने गये।

      क्रांतिकारी आंदोलन को पूरे राज्य तथा उŸारी तेलंगाना जो कि एक गुरिल्ला जोन के रूप में उभर रहा था। 1986 में ये दण्ड गणराज्य भेजे गये, जहां इन्होंने फारेस्ट कमेटी के एक सदस्य के रूप में अपनी जिम्मेदारी ग्रहण की व गुरिल्ला दस्ते का नेत्त्व किया...साथ ही गढ़ चिरौली व बस्तर की जनता का नेतृत्व सम्भाला। 1993 में सेन्ट्रल आर्गनाइजिंग कमेटी सी0 ओ0 सी0 के सदस्य बने।

      1994 और इससे आगे इन्होंने पूर्वी उŸारी भारत के साथ-साथ बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन को फैलाया व विकसित किया, जो कि नक्सलबाड़ी आंदोलन के बाद छितराया व तितर-बितर हो चुके थे।

      किशनजी उर्फ कोटेश्वर राव ने विभिन्न गुटों में बंटे व खूनी जंग में परस्पर उलझे वर्चस्व की लड़ाई लड़ने वाले नक्सलवादी, माओवादी गुरिल्ले क्रांतिकारी योद्धाओं के बीच एकता का संदेश दिया। उनका नारा था ’’ क्रांतिकारियों की एकता ही क्रांति का रास्ता’’ किशनजी ने दृढ़ निश्चय के साथ बांग्ला भाषा सीखा...और बंगाल की जनता के दिल में अपनी शिष्टता व शालीनता से जगह बनाई।

      1995 में ये काॅमरेड कोटेश्वर राव अखिल भारतीय स्पेशल कान्फ्रेस सी0 पी0 आई0 एम0 एल0 पीपुल्सवार के सी0 सी0 मेम्बर चुने गये थे। किशन जी ने विभिन्न क्रांतिकारी नक्सलवादी माओवादी ग्रपों की एकता के लिए अथक प्रयास किया। परिणाम स्वरूप 1998 में पीपुल्सवार व पार्टी युनिटी का विलय कराने में सफलता हासिल की।

      2001 में सी0 पी0 आई0 एम0 एल0 पीपुल्सवार पार्टी कांग्रेस मंे ये एक बार फिर सी0 सी0 तथा पोलितब्यूरों सदस्य चुने गये। इन्होंने नार्थ रिजिनल ब्यूरों के सेक्रेटी की जिम्मेदारी सम्भाली जिससे बिहार, झारखण्ड, वेस्ट बंगाल, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब का इन्हें कार्यभार सौंपा गया।

ये पी0 डब्लूजी और एम0 सी0 सी0 के बीच एकता के सूत्रधार बने...जिनका परस्पर 2004 में विलय के पश्चात सी0 सी0 तथा पोलिट ब्यूरो के सदस्य रहे। साथ ही साथ इस्टर्न रिजिनल ब्यूरो का काम भी देखते रहें, इन्होंने अपना ध्यान बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन विकसित करने पर दिया व इ0 आर0 बी0 के प्रवक्ता रहे।

      काॅमरेड कोटेश्वर राव ने पार्टी मैगजीन आरम्भ किया तथा पार्टी के भीतर राजनीतिक शिक्षा पर विशेष जोर दिया। इन्होंने क्रांति, इराजेन्डा, जंग, प्रभात मैनगार्ड तथा दूसरी पार्टी मैगजीनों को निकालने में प्रमुख भूमिका निभाई..। पश्चिम बंगाल में विभिन्न क्रांति कारी पत्रिकायें निकालने में इनका भारी योगदान रहा। ये पोलिट ब्यूरोसन कमेटी एजुकेशन स्कोप के मेम्बर रहे तथा पार्टी रैंक में माक्र्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के टीचिंग पर विशेष बल दिया। पार्टी के पूरे इतिहास में क्रांतिकारी आंदोलन प्रभाव व विकास में किशनजी ने एक यादगार पारी खेली। 2007 जनवरी में उन्होंने नौंवी एकता कांग्रेस में भाग लिया। वे फिर एक बार सी0 सी0 मेम्बर चुने गये, और उन्होंने पोलित ब्यूरों मेम्बर तथा ई0 आर0 बी0 का उŸारदायित्व सम्भाला। सिंगुर और नन्दी ग्राम जन आंदोलन जो 2007 से फूट पड़ा। मैं काॅमरेड कोटेश्वर राव का सदा राजनीतिक दिशा दिर्नेश हासिल रहा। पश्चिम बंगाल की सरकार सोशल फासिस्ट के विरूद्ध पुलिस समाज के खिलाफ गौरवमय लालगढ़ के जंग विद्रोह के केन्द्र बिन्दु किशनजी ही रहे। उन्हेांने मीडिया के माध्यम से पार्टी को प्रोपगण्डा पार्टी की शुरूआत की। सन 2009 में जब चिदम्बरम ने जो युद्ध विराम के नाम पर मध्यम वर्ग को मिश गाइड करना चाहा किशन जी ने  इसका जोरदार व प्रभावी ढंग से पर्दाफाश किया। इस जघन्य हत्या के जितनी भी  निंदा की जाय थोड़ी होगी। वंचित जनों से क्रांतिकारी नेतृत्व व दिशा निर्देश छीनने के शासक वर्ग के इस प्रयास के बावजुद सर्वाहारा वर्ग नेतृत्व विहीन नहीं हो सकता, किशन जी लुटेरे वर्ग के समक्ष बहुत बड़े बाधक थे। वह देशभक्ति व आजाद पसंद जनता के समक्ष एकता का संदेश बांटते रहें। क्रांतिकारी आंदोलन के रक्षा की और ऐसे में जनता का कर्Ÿाव्य होता है कि अपने नेता के आंख की पुतली की तरह रक्षा करें। यह और कुछ नहीं बल्कि देश के भविष्य को बचाना है तथा उसके आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाना है।

      57 साल की उम्र के बावजुद कामरेट कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने कठिन व दुस्तर गुरिल्ला जीवन एक युआ की तरह जीया और जहां भी गये साथ-साथ कैडरों व जनों को भरते रहें। उनका जीवन खासतौर पर नई पीढ़ी के लिए उत्साह व प्रेरणादायक था। ये लम्ब दुरीयां तय करते हुए बिना आराम किये अध्ययन करते रहें, ये बहुत कम सोते थे। एक साधारण जीवन जीते थे। और एक कठिन कार्य करते थे। वह मिलनसार थे, और सभी उम्र तथा वर्ग के लोगों से मिला करते थे। और अभूतपूर्ण प्रेरणा प्रदान करते थे। उनकी सहादत एक अपूर्णीय क्षति है। खासकर भारत कें क्रांतिकारी जनान्दोलन के लिए लेकिन हमारे देश की जनता महान है। यह जनता का आंदोलन है जिसने साहसी और समर्पणकारी क्रातिकारी कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी को जन्म दिया। जिसने सारे क्रांतिकारियों को एक सूत्र में पिरोआ व बांधा। आए उसकी सहादत को काले दिवस, क्रांतिकारी दिवस, एकता दिवस, व संकल्प दिवस के रूप में मनायें।

      सूचित्र महतो 1994 में पीपुल्सवार ग्रुप में शामिल हुई थी। माओवादियों में सुचित्रा का कद इतना ऊँचा था कि वह बंगाल के पमुख माओंवादी नेताओं में शुमार होने लगी थी। वह सी0 पी0 आई माओवादी स्टेट सक्रेटी आकाश ओर माओवादी वाद, कमांडर विकास के समान ही थी। सुचित्रा महतो बंगाल के प्रमुख माओंवादी बुद्धिजीवी शशिधर महतो की विधवा थी। वह माओवादी पोलित ब्यूरों मेम्बर किशन जी के समीपस्थों में से थी। बिहार, बंगाल, झारखण्ड और उड़ीस में जो माओवादी जनयुद्ध चल रहा है। उसके सबसे बड़े लीडर थे। 25 नवम्बर 2011 को जब किशन जी को एक फर्जी मुठभेड़ में सिक्यूरीटी फोर्सेस ने मारा तो सुचित्रा महतो भी उनके साथ ही थी...कहा जाता है। सुचिता महतो थी जिसने एक बच्चे का जन्म दिया है। आज भी सूचिता महतेा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कस्टडी में ही है। किशन जी की शहादत से जुड़े कई सवाल आगे भी अनुŸारित रहेंगे.... जिनमें प्रमुख यह कि क्या सुचित्रा महतो ने ही किशन जी पकड़वाया है।

      किशनजी एकता परस्त थे और क्रांतिकारियों के बीच की एकता का महत्व समझते थे। इसीलिए सतत एकता के प्रया समंे लगे रहे। उनसे सीख लेकर ही आज भारतीय राज्य द्वारा जेलों मंे बंद क्रांतिकारी एकता व एक साझा मंच बनाने की अपील कर रहे हैं क्योंकि इतनी तो सबके पास समझदारी है ही कि एकता के बिना क्रांति का सवाल ही पैदा नहीं होता।

      नेपाल की माओवादी क्रांति की एकता के अभाव में बिखराव के दौर से गुजर रही है, जिसकी मूल वजह प्रचार की संशाधिनवादी ढलाने है। हम जब भी एकता की बात करते है तो संशोधनवादियों के साथ एकता की बात नहीं करते। क्रांतिकारियों के बीच एकता की बात करते है यही नहीं भारतीय व नेपाली माओवादियों के बीच की एकता भी काफी मायने रखती है। क्योंकि पहले भारत में क्रांति के शिशु का गला घोट देंगे इसीलिए नेपाल और भारत में एक साथ क्रांति की तैयारिया करोकृ और किशन जी की शहादत दिवस  को ब्लैक डे के साथ संकल्प दिवस और क्रांति दिवस के रूप में मनाआ।

जीवन मिश्रा

दिनांक 24/11/2012

 

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