गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

क्रांतिकारियों की एकता ही क्रांति का रास्ता :

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      भारत के क्रांतिकारी आन्दोलन के इतिहास में 24 नवम्बर 2011 ब्लैक डे, शहादत दिवस व क्रांतिकारी की एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1 जुलाई 2010 को अमेरिकी नव साम्राज्यवाद और उसके दलालों ने सी0 पी0 आई माओवादी के प्रवक्ता काॅमरेड आजाद को इसी प्रकार मार डाला था।

      सी0 पी0 आई0 माओवादी के सर्वोच्च लीडर काॅमरेड कोटेश्वर राव की हत्या की साजिश; माओवादी क्रांतिकारी संघर्ष के लिए गहरा आघात है। काॅमरेड कोटेश्वर राव उर्फ किशन जी जो जनता और पार्टी के बीच प्रह्लाद, रामजी, विमल, आदि नामों से प्रसिद्ध थे। वह एक अथक योद्धा थे, जिसने 37 वर्षो तक बिना विश्राम किये’ क्रांति के मशाल को जलाये रखा।

      कोटेश्वर राव का जन्म आंध्र प्रदेश उŸारी तेलंगाना, करीम नगर जिले के पेड्डापल्ली टाउन मे 1954 में हुआ था। इनके पिता वेंकटैया एक स्वतंत्रता सेनानी थे। जबकि माँ मधुरमा प्रगतिशील विचारोें की गृहणी थी। कोटेश्वर राव ाक दिल बवचपन से ही देश प्रेम और उत्पीडि़त जनता के प्रति दया व करूणा से ओत-प्रोत था। 1969 में कोटेश्वर राव ने पृथक तेलंगाना आंदोलन में भाग लिया। जब ये पेड्डापल्ली टाऊन हाईस्कूल के छात्र थे...तभी नक्सल बाड़ी और श्री काकुलम के गौरवमयता से प्रेरित हो। क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े उस समय ये एस0 आर0 आर0 काॅलेज करीम नगर ग्रेजुएट के छात्र थे। 1974 में पार्टी के एक सक्रिय सदस्य के रूप में काम करना शुरू कर दिया। इमर्जेन्सी में ये जेल गये, आपातकाल की समाप्ति के बाद गृह जिले करीम नगर में पार्टी आर्गनाइजर की तरह काम करना शुरू किया।

      पार्टी के काल ’’गांव चलो अभियान’’ का इन्होंने सफल नेतृत्व किया तथा किसानों के साथ सम्बन्ध विकसित किया। 1978 में जगतीयाल जय यात्रा को उभारने में प्रमुख भूमिका निभाया। कोटेश्वर राव अदीलाबाद करीम नगर सी0 पी0 आई0 एम0 एल0 ज्वाइन्ट कमेटी के सदस्य चुने गये। 1979 में जब यह कमेटी विकसित हुई तब ये करीम नगर डिस्ट्रीक्ट कमेटी के सेक्रेटी निर्वाचित हुए और जिम्मदारियां सम्भाली। 1985 आन्ध्र प्रदेश राज्य कमेटी के निर्माण में कठिन भूमिका निभाई व सकेट्री चुने गये।

      क्रांतिकारी आंदोलन को पूरे राज्य तथा उŸारी तेलंगाना जो कि एक गुरिल्ला जोन के रूप में उभर रहा था। 1986 में ये दण्ड गणराज्य भेजे गये, जहां इन्होंने फारेस्ट कमेटी के एक सदस्य के रूप में अपनी जिम्मेदारी ग्रहण की व गुरिल्ला दस्ते का नेत्त्व किया...साथ ही गढ़ चिरौली व बस्तर की जनता का नेतृत्व सम्भाला। 1993 में सेन्ट्रल आर्गनाइजिंग कमेटी सी0 ओ0 सी0 के सदस्य बने।

      1994 और इससे आगे इन्होंने पूर्वी उŸारी भारत के साथ-साथ बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन को फैलाया व विकसित किया, जो कि नक्सलबाड़ी आंदोलन के बाद छितराया व तितर-बितर हो चुके थे।

      किशनजी उर्फ कोटेश्वर राव ने विभिन्न गुटों में बंटे व खूनी जंग में परस्पर उलझे वर्चस्व की लड़ाई लड़ने वाले नक्सलवादी, माओवादी गुरिल्ले क्रांतिकारी योद्धाओं के बीच एकता का संदेश दिया। उनका नारा था ’’ क्रांतिकारियों की एकता ही क्रांति का रास्ता’’ किशनजी ने दृढ़ निश्चय के साथ बांग्ला भाषा सीखा...और बंगाल की जनता के दिल में अपनी शिष्टता व शालीनता से जगह बनाई।

      1995 में ये काॅमरेड कोटेश्वर राव अखिल भारतीय स्पेशल कान्फ्रेस सी0 पी0 आई0 एम0 एल0 पीपुल्सवार के सी0 सी0 मेम्बर चुने गये थे। किशन जी ने विभिन्न क्रांतिकारी नक्सलवादी माओवादी ग्रपों की एकता के लिए अथक प्रयास किया। परिणाम स्वरूप 1998 में पीपुल्सवार व पार्टी युनिटी का विलय कराने में सफलता हासिल की।

      2001 में सी0 पी0 आई0 एम0 एल0 पीपुल्सवार पार्टी कांग्रेस मंे ये एक बार फिर सी0 सी0 तथा पोलितब्यूरों सदस्य चुने गये। इन्होंने नार्थ रिजिनल ब्यूरों के सेक्रेटी की जिम्मेदारी सम्भाली जिससे बिहार, झारखण्ड, वेस्ट बंगाल, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब का इन्हें कार्यभार सौंपा गया।

ये पी0 डब्लूजी और एम0 सी0 सी0 के बीच एकता के सूत्रधार बने...जिनका परस्पर 2004 में विलय के पश्चात सी0 सी0 तथा पोलिट ब्यूरो के सदस्य रहे। साथ ही साथ इस्टर्न रिजिनल ब्यूरो का काम भी देखते रहें, इन्होंने अपना ध्यान बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन विकसित करने पर दिया व इ0 आर0 बी0 के प्रवक्ता रहे।

      काॅमरेड कोटेश्वर राव ने पार्टी मैगजीन आरम्भ किया तथा पार्टी के भीतर राजनीतिक शिक्षा पर विशेष जोर दिया। इन्होंने क्रांति, इराजेन्डा, जंग, प्रभात मैनगार्ड तथा दूसरी पार्टी मैगजीनों को निकालने में प्रमुख भूमिका निभाई..। पश्चिम बंगाल में विभिन्न क्रांति कारी पत्रिकायें निकालने में इनका भारी योगदान रहा। ये पोलिट ब्यूरोसन कमेटी एजुकेशन स्कोप के मेम्बर रहे तथा पार्टी रैंक में माक्र्सवाद-लेनिनवाद-माओवाद के टीचिंग पर विशेष बल दिया। पार्टी के पूरे इतिहास में क्रांतिकारी आंदोलन प्रभाव व विकास में किशनजी ने एक यादगार पारी खेली। 2007 जनवरी में उन्होंने नौंवी एकता कांग्रेस में भाग लिया। वे फिर एक बार सी0 सी0 मेम्बर चुने गये, और उन्होंने पोलित ब्यूरों मेम्बर तथा ई0 आर0 बी0 का उŸारदायित्व सम्भाला। सिंगुर और नन्दी ग्राम जन आंदोलन जो 2007 से फूट पड़ा। मैं काॅमरेड कोटेश्वर राव का सदा राजनीतिक दिशा दिर्नेश हासिल रहा। पश्चिम बंगाल की सरकार सोशल फासिस्ट के विरूद्ध पुलिस समाज के खिलाफ गौरवमय लालगढ़ के जंग विद्रोह के केन्द्र बिन्दु किशनजी ही रहे। उन्हेांने मीडिया के माध्यम से पार्टी को प्रोपगण्डा पार्टी की शुरूआत की। सन 2009 में जब चिदम्बरम ने जो युद्ध विराम के नाम पर मध्यम वर्ग को मिश गाइड करना चाहा किशन जी ने  इसका जोरदार व प्रभावी ढंग से पर्दाफाश किया। इस जघन्य हत्या के जितनी भी  निंदा की जाय थोड़ी होगी। वंचित जनों से क्रांतिकारी नेतृत्व व दिशा निर्देश छीनने के शासक वर्ग के इस प्रयास के बावजुद सर्वाहारा वर्ग नेतृत्व विहीन नहीं हो सकता, किशन जी लुटेरे वर्ग के समक्ष बहुत बड़े बाधक थे। वह देशभक्ति व आजाद पसंद जनता के समक्ष एकता का संदेश बांटते रहें। क्रांतिकारी आंदोलन के रक्षा की और ऐसे में जनता का कर्Ÿाव्य होता है कि अपने नेता के आंख की पुतली की तरह रक्षा करें। यह और कुछ नहीं बल्कि देश के भविष्य को बचाना है तथा उसके आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाना है।

      57 साल की उम्र के बावजुद कामरेट कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने कठिन व दुस्तर गुरिल्ला जीवन एक युआ की तरह जीया और जहां भी गये साथ-साथ कैडरों व जनों को भरते रहें। उनका जीवन खासतौर पर नई पीढ़ी के लिए उत्साह व प्रेरणादायक था। ये लम्ब दुरीयां तय करते हुए बिना आराम किये अध्ययन करते रहें, ये बहुत कम सोते थे। एक साधारण जीवन जीते थे। और एक कठिन कार्य करते थे। वह मिलनसार थे, और सभी उम्र तथा वर्ग के लोगों से मिला करते थे। और अभूतपूर्ण प्रेरणा प्रदान करते थे। उनकी सहादत एक अपूर्णीय क्षति है। खासकर भारत कें क्रांतिकारी जनान्दोलन के लिए लेकिन हमारे देश की जनता महान है। यह जनता का आंदोलन है जिसने साहसी और समर्पणकारी क्रातिकारी कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी को जन्म दिया। जिसने सारे क्रांतिकारियों को एक सूत्र में पिरोआ व बांधा। आए उसकी सहादत को काले दिवस, क्रांतिकारी दिवस, एकता दिवस, व संकल्प दिवस के रूप में मनायें।

      सूचित्र महतो 1994 में पीपुल्सवार ग्रुप में शामिल हुई थी। माओवादियों में सुचित्रा का कद इतना ऊँचा था कि वह बंगाल के पमुख माओंवादी नेताओं में शुमार होने लगी थी। वह सी0 पी0 आई माओवादी स्टेट सक्रेटी आकाश ओर माओवादी वाद, कमांडर विकास के समान ही थी। सुचित्रा महतो बंगाल के प्रमुख माओंवादी बुद्धिजीवी शशिधर महतो की विधवा थी। वह माओवादी पोलित ब्यूरों मेम्बर किशन जी के समीपस्थों में से थी। बिहार, बंगाल, झारखण्ड और उड़ीस में जो माओवादी जनयुद्ध चल रहा है। उसके सबसे बड़े लीडर थे। 25 नवम्बर 2011 को जब किशन जी को एक फर्जी मुठभेड़ में सिक्यूरीटी फोर्सेस ने मारा तो सुचित्रा महतो भी उनके साथ ही थी...कहा जाता है। सुचिता महतो थी जिसने एक बच्चे का जन्म दिया है। आज भी सूचिता महतेा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कस्टडी में ही है। किशन जी की शहादत से जुड़े कई सवाल आगे भी अनुŸारित रहेंगे.... जिनमें प्रमुख यह कि क्या सुचित्रा महतो ने ही किशन जी पकड़वाया है।

      किशनजी एकता परस्त थे और क्रांतिकारियों के बीच की एकता का महत्व समझते थे। इसीलिए सतत एकता के प्रया समंे लगे रहे। उनसे सीख लेकर ही आज भारतीय राज्य द्वारा जेलों मंे बंद क्रांतिकारी एकता व एक साझा मंच बनाने की अपील कर रहे हैं क्योंकि इतनी तो सबके पास समझदारी है ही कि एकता के बिना क्रांति का सवाल ही पैदा नहीं होता।

      नेपाल की माओवादी क्रांति की एकता के अभाव में बिखराव के दौर से गुजर रही है, जिसकी मूल वजह प्रचार की संशाधिनवादी ढलाने है। हम जब भी एकता की बात करते है तो संशोधनवादियों के साथ एकता की बात नहीं करते। क्रांतिकारियों के बीच एकता की बात करते है यही नहीं भारतीय व नेपाली माओवादियों के बीच की एकता भी काफी मायने रखती है। क्योंकि पहले भारत में क्रांति के शिशु का गला घोट देंगे इसीलिए नेपाल और भारत में एक साथ क्रांति की तैयारिया करोकृ और किशन जी की शहादत दिवस  को ब्लैक डे के साथ संकल्प दिवस और क्रांति दिवस के रूप में मनाआ।

जीवन मिश्रा

दिनांक 24/11/2012

 

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

भारत को एक समाजवादी क्रांतिकारी संविधान की जरुरत है .......

भारत का संविधान एक सामन्ती और पूंजी वादी संविधान है |हमारे देश में अगर अरब पतियों और खरबपतियों की अगर बाढ़ आ गयी है अथवा भारतीय संसद के दोनों सदनों में 400 से अधिक करोड़ पति बैठे हुये है और पुरे पार्लियामेन्ट को हाईजेक कर लिया है तो इसमे हैरत की कोई बात नही है यह हमारे संविधान के मूल भावनाओ के अनुकूल ही है ,इसमे यही होगा |
संविधान निर्माण के समय भी सविधान सभा के कई ऐसे सदस्य थे जिन्होने उसी समय इसकी निंदा करते हुये कहा था " हम दास मनोविर्ति से पश्चिम का अनुसरण कर रहे है यह संविधान हमारे देश के अनुकूल नहीं है" अर्थात यह संविधान उस समय ही खारिज़ कर दिया गया था , दरअसल यह सामंतो और पूंजीपतियों के लिए एकाधिकारो और विशेषाधिकारो पुलिंदा था |
और तो और डॉ भीमराव अम्बेडकर को समाजवाद शब्द से ही नफरत थी क्योकि वे पूँजीवाद और सामंतवाद के पोषक थे ,भारत की 80% जनता गावों में रहती थी पर संविधान में गावों की पूरी तरह से अव्हेलना की गयी है अहनफिर यह तो 5% शहरो में रहने वाले सामंतों,पूंजीपतियों ,सेठ ,साहूकारों का ही लोकतंत्र है आज भी उन्ही का लोकतंत्र है आम आदमी के लोकतंत्र का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता |
ना तुम राष्ट्रपति का चुनाव कर सकते हो ,ना प्रधानमंत्री का चुनाव कर सकते हो ,ना मुख्यमंत्री चुनाव कर सकते हो ,ना राज्यपाल का कर सकते हो ना न्यायधीशों का चुनाव कर सकते हो ये तमाम जनता के जनवादी राजनीतिक अधिकार सविधान ने पार्लियामेन्ट में बैठे करोड़पति प्रतिनिधयों को थमा रखा है | फिर बताओ इस देश में लोकतंत्र कहाँ है ? प्रजातंत्र कहाँ है ? लोकतंत्र किसका है प्रजातंत्र किसका है ? पूँजीपति का या जनता का ...?
अगर देश के उद्योगपति ही उद्यौग चलायेगे ,संसद को संचालित करेगे, सरकार चलायेगे,शासन-प्रशासन ,चिकित्सालय चलायेगे ,विस्वविद्यालय चलाएगे, और सिर्फ अपने ही मुनाफे के लिए तो आम आदमी के लिए इस देश में कौन सी जगह है....? तो क्या मानव संसाधन मात्र है अगर मानव संसाधन मात्र है तो किसका ...उद्योगपतियों का ?
मानव एक सामजिक एवं राजनीतिक प्राणी है वह संसाधन नहीं है संसाधन तो भौतिक एवं प्राकृतिक पदार्थ होते है सवाल सीधा सुस्पष्ट है |वह कोई वास्तु या पदार्थ नहीं है कि आप उसे संसाधन मन ले |वह सिर्फ अपने बारे मे हे नहीं सोचता और ना ही 'आप भला तो जग भला मे विश्वास करता है उसकी चिंता हमेशा एक आदर्श समाज कि स्थापना से है |बावजूद आज यह एक कडवी सच्चाई है कि आदामी को, जिस के सीने मे एक धढक़ता हुआ दिल है वस्तु या पदार्थ रूपी संसाधन मे बदल देने की प्रक्रिया काफी तेज हो गयी है |
यह देश का विकाश नहीं पूंजीपतियो का विकाश है
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भारत के पूँजीपति और कार्पोरेट घरानों ने दुनिया भर मे छोटे बड़े 400 से ज्यादा कम्पनियों का अधिग्रहण किया है और विदेशी कारपोरेट घरानों ने भी भारत कि बाजारों मे पूंजी लगाई है जिसके फल स्वरूप वे इस देश से हर साल मुनाफे के तौर पर 65 अरब डॉलर लुट कर ले जा रहे है बावजूद ये इस देश के खुदरा बाज़ार मे FDI के लिए बैचैन है जिसका पुरे हिंदुस्तान मे लगातर विरोध्जारी है | जिसने प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के भी हाथ पाव बांध रखे है और उनकी विवसता जग जाहिर साबित हों चुकी है और मनमोहन सिंह कि स्थिति धोबी कि कुते जैसी हों गई है जो कि ना घर का होता है और ना घाट का होता है |
भारतीय कारपोरेट घराना सहारा ने न्यूयार्क और लंदन के प्रतिष्टित होटल प्लाज़ा और ग्रोस वेनोर हाउस का अधिग्रहण किया तो दूसरी तरफ ताज हॉटल के मालिक टाटा ने 2008 मे बोस्टन के रिट्ज कार्लटन होटल 17 करोड़ डॉलर मे ख़रीदा और इसी टाटा टी ने सन 2000 मे दुनीया कि सबसे बड़ी चाय कंपनी टोलेती का अधिग्रहण तो किया तो योजना आयोग के उपाध्क्चा मोंटक ने चाय को राष्टीय पेय घोषित करने कि
सिफारिस कर डाली इसका मतलब यह है कि भारतीय पूंजीपतियों के होटलों के अधिग्रहण से ना तो इन भारत के गरीब जनता का पेट भर पाया और नहीं चाय कि प्याश भी बुझ पाई ऐसा इसलिए कि यह भारत के पूंजीपतियओ का विकाश है अवाम का नहीं |
भारत कि पाइनियर दवा निर्माता कंपनी रैनबक्सी ने 2006 मे दुनिया कि बड़ी दवा बनाने वाली कम्पनियो ,इटली कि ग्लेक्सो एस्मिथलाई कि सहयोगी कंपनी एलन , रोमानिया कि सबसे बड़ी दवा कंपनी तेरापिया और बेलजियम कि एथिमएनवी का एक सप्ताह के भीतर अधिग्रहण कर लिया बावजूद भारत कि एक अरब कि आबादी दवा के बिना मर रही है इसलिए कि यह रैनबक्सी का विकाश था आम का नहीं|
2008 मे टाटा ने ब्रिटेन के बेहतरीन कार बनाने वाली कंपनी जगुवार और लैंडरोवर का अधिग्रहण २.३ अरब डॉलर मे कर लिया इससे भारत के गरीबो के घर मे चार पहिये कार नही आ गये कहने का मतलब स्पष्ट यह देश का विकाश नहीं यह पूंजीपतियो का विकाश है |
भारत का प्रमुख उद्योगपति टाटा स्वयं चाहता है कि भारत पाकिस्तान, भारत चीन के बीच दुशमनी कि खबरे बनी रहे ताकि आम जनता का ध्यान उसकी मूल समस्याओ पर ना जाये और पूंजीपतियों द्वार मुल्क के लुट खसोट पर पर्दा डाला जा सके साथ ही साथ चीन पाकिस्तान के यूद्ध के खबरों मे अन्ध राष्ट्रभक्ति मे दुबोये रखा जाय ताकि वह क्रांति व विद्रोह कि बाते ना सोचे |
हॉल ही मे टाटा ने पाकिस्तान को दोयम दर्जे का दुशमन वा चीन द्वार  पाकिस्तान को हथियार आपूर्ति करने वाला दुसमन करार दिया पर साम्राजवादी अमेरिका ने पाकिस्तान, चीन ,भारत तीनों को हाथियार आपूर्ति करते हुये इस छेत्र मे हथियारों कि दौड़ व अंतर महादुपीय यूद्ध उलझाये हुये है फिर भी उसे वह एक यूद्ध उन्मादी नहीं मानता जैसा कि अमेरिका के साथ टाटा के पुराने अदौगिक रिश्ते है |
भारत और पाकिस्तान के बीच चार चार यूद्ध क्रमशः १९४७,१९६५,१९७१,१९९९, और १९६२ मे चीन के साथ ये सभी यूद्ध कांग्रेसीयो ने अपने पडोसी के साथ लड़े फिर एक बार फिर पाकिस्तान को दुशमन करार देने का क्या मायने... एक और यूद्ध ? सच पूछिए तो कारगिल यूद्ध के बावजूद वाजपेयी का काल भारत पाकिस्तान सम्बंधो मे स्वर्ण युग की तरह याद किया जायेगा |
भारत और पाकिस्तान एक ही देश के दो पार्ट है बावजूद हिंदू वा मुस्लमान मजबहबी चरमपंथीयो के लिए इस हकीकत को पचा पाना सहज नहीं दोनों देशो के पूँजीपति वा सम्प्रदायक सामंत नहीं चाहते कि इन दोनों देशो कि जनता एक हों व भाईचारा के साथ रहे इनकी हरचंद कोशिश होती है कि ऐसे वारदातों को अंजाम जाय जिससे दोनों देश के बीच दुसमनी का माहौल हमेश हमेशा के लिए कायम रहे शांति वार्ताये न हों जिससे इनका लुट खसोट वा शोषण लगातार जारी रहे व गरीबी बेरोज़गारी अशिक्षा कुपोषण पर दुश्मनी का पर्दा डाला जा सके और जनता हिंदू और मुस्लमान के नाम पर लड़ती रहे और उनकी चाल व सरमायादारी सदियो तक कायम रहे |
इसीलिए ये बाजारों और भीड़ भरे इलाको मे बम विस्फोट करवाते रहते है ताकि दुश्मनी का अन्त ना हों दोनों देशो कि जनता हिंदू व मुसलिम साम्प्रदायिकता को लात मार एक न हों जाये जैसा कि भारत और पाकिस्तान के युवा और छात्र नवजवान इसे भली भाती समझने लगे है कि इन्ही सामंतो व सम्राज्यवादीयो ने ही हमारे बीच दुश्मनी फैला रखी है ताकि हम अपने हालत से नवाकिफ व बेखबर रहे ऐसे मे अगर क्रिकेट मैच कि बहाली होती है तो सराहनीय है |
**********************किसका देश ****************
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सवाल आपसे ....

आदि वासी ही इस देश के मूल वासी है ,यह आदिवासीयों का ही देश है ,यहाँ आर्य ,ब्राम्हण,मुस्लमान और ईसाई, बाहर से आये इस देश का आर्येकरण ,ब्रम्नीकरण , इस्लामी वा ईसाईकरण हुआ पर आदि वासी समाज ने इन सब से अपने को अलग वा आजाद रखा वै पीछे ( विस्थापित ) होते चले गए पर किसी कि अधीनता नहीं स्वीकारी, इस विकाश शील समाज से जानबूझकर अपने को दूर रखा क्योकि वे इस विकास को वै अपना विनाश समझते है |
आर्य आदि वासियों को अपना गुलाम नहीं बना पाए , ब्राम्हणवादी ब्यावस्था से भी अपनी दुरी बनाये रखी ,मुगलों कि अधीनता भी नहीं स्वीकारी, अग्रेज भी गुलामी कि जंजीर में नहीं जकड़ सके ,उनसे दुरी बनाये रखने में अपना हित व विकाश समझा | आदिवासियों का देश वा उनकी राजधानी "अबुझमाड़ " सच मुच अब तक दुनिया से दूर व अछुता बनी रही वे आजाद रहे ...उनका देश आजाद रहा |
आदि वासी भी चाहते है कि उनकी संस्कृति,परम्पराओ व रीति-रिवाज़ का आधुनिकीकरण हो पर आधुनिक समाज कि असमानता व विसगतियों से बचना चाहते है| सरकार कहती है कि विकाश सब कुछ है पर आदिवासी अपने सामाजिक पर्यावरण को सब कुछ मानते है |
दरअसल यही उनका विकाश है यही उनकी आजादी है वरना आदिवासियों और गैर आदिवासी देश के बीच क्या अन्तर रह जायेगा |
...सवाल पैदा होता है कि सरकार आदिवासीयो के देश व उनकी राजधानी अबूझमाड़ को सेना ,पुलिश कमांडो और अस्त्र शस्त्र के बल क्यों मिलाना चाहती है ?

उनके लिए रोड ,रेल , बिजली ,बसे बिना उनकी मर्ज़ी के क्यों दौडाना चाहती है ?
जवाब दिन के रौसनी कि तरह अस्पष्ट है , जैसा कि उनके घर आगंन खेत ,खलिहान में सोने ,चांदी ,हीरे , और मोतियों के खान है ,लोहा कोयला और बाक्साइट के बडे भंडार है जिन पर देशी और विदेशी पूंजीपतियों कि ललचायी हुई गिद्ध दष्टी है |पूँजीपति,मल्टीनेशनल,कार्पोरेट व पूँजीपति ,राज्य व केंद्र सरकार को मोटा कमीशन थमा कर आदिवासी देश कि प्राकृतिक सम्पदा ,,पर्यावरण का विनाश कर चम्पत हो जाना चाहते है |इसी कारण से वे रेल और रोड का निर्माण कर जंगल का विनाश करने में लगे हुये है |
सवाल पैदा होता है कि हम उन्हें आजाद क्यों ना रहने दे ?
आदिवासी कहते है कि जंगल और पहाड़ हमारा देश है सरकार कहती है हमारा है सोचो ,किसका देश है ? सोचो कौन देसी है कौन परदेशी है , CRPF कोबरा सेना पुलिश अर्धसैनिकबल ,SP, कलेक्टर ,देसी है अथवा आदिवासी कौन किसके जगह में गया है ,|और आप लोगो से आखरी  सवाल ....
सरकार क्या शहरों कि गन्दगी को साफ कर चुकी है जो जंगलो को साफ करने गये है ?
क्या शहर, गावों, के लोगो को रोजगार दे चुकी है जो जंगलो में में विकास और रोज़गार कि बात कर
रही है जो उनकी सरकारी नितियों से दूर रहना पसंद करते है ?

जब शहरों, गावों में रोज़गार ,उचित वेतन , विकाश ,भ्रष्टाचार कि बात करती है तो लाठी कि मार पड़ती है और जब और जब जंगल में आदिवासी सरकारी नीतियों और उसके विकास माँडल से दूर रहना चाहती है तो भी वहाँ गोली चलती है |

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

गैंग रेप

गांवो में नहीं होता गैंग रेप 
जंगलो में भी नहीं   होते गैंग रेप ,
 दिल्ली शहरों ,महानगरों में होते हैं गैंग रेप 
हिस्ट्री और पोयट्री में भी नहीं मिलता गैंग रेप 
दानवों ,दैत्यों ,राक्षसों ,असुरों ,ने भी नहीं किया 
सिनेमा ,टी0 वी0 और होटलों में होते हैं गैंग रेप 
मंत्रीजी ,उद्दोगपति ,पूंजीपति,उच्च अधिकारी 
जहाँ रात को टहराते हैं , 
पर कोर्ट विरोध प्रदर्शन  नहीं होता 
मणिपुर और कश्मीर  में होते हैं गैंग रेप 
सेना करती हैं 
पर कोर्ट विरोध प्रदर्शन नहीं होता 
क्योंकि यह दर्ज हैं राष्ट्र और राष्ट्रवाद के नाम 
यहाँ भी लागू  होती  हैं विकास की ट्रीकलिंग थ्योरी 
ऊपर से निचे की ओर टपकती है ,रिसती हैं ,चुती हैं
संस्कृतियाँ - अपसंस्कृतियाँ 
इन तुच्चे बस वालों ने इन्ही से 
सिखा  गैंग रेप 
निकल गयी  महिला सश्क्तिकरण की हवा 
महिलाओ ,छात्राओं को हथियारबंद  होना होगा 
नक्सली महिला गुरिल्लो के साथ नहीं होता गंग रेप 
फूलन के साथ भी हुआ था गैंग रेप 
गैंग रेप व्यवस्था से जुड़ी हुई हैं 
संविधान में इसके लिए कानून हैं
राष्टपति भवन के सामने 
इतना बड़ा  विरोध प्रदर्शन इस बात का सबूत हैं कि 
देश हिचकोले खा रहा हैं 
कभी भी डूब सकती है यह व्यवस्था 
विरोध प्रदर्शन एक छोटी सी चिंगारी हैं 
जो जला कर खाक कर सकती है 
इस जंगलराज को 
ग्रीहमंत्री ने सही फ़रमाया 
प्रतिरोध का नाम माओवाद हैं 
प्रधानमंत्री ने सही बात कही 
वास्ता दिया अपनी तीन -तीन बेटियों का 
गैंग रेप करने वालो की भी होती है माँ , बहने ,बेटियां 
राष्टपति के सांसद  सहबजादे ने भी की देहूदी टिप्पड़ी 
महिलाओं के विरोध प्रदर्शन पर लाठियां भांजना भी  गैंग रेप हैं 
 कायम करनी ही होगी  समानता पर आधारित व्यवस्था 
जहाँ सारा समाज आरक्षित ,संरक्षित व सुरक्षित हो।

 Kavi Atama  कविआत्मा .वाराणसी