शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

यह देश का विकाश नहीं पूंजीपतियो का विकाश है
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भारत के पूँजीपति और कार्पोरेट घरानों ने दुनिया भर मे छोटे बड़े 400 से ज्यादा कम्पनियों का अधिग्रहण किया है और विदेशी कारपोरेट घरानों ने भी भारत कि बाजारों मे पूंजी लगाई है जिसके फल स्वरूप वे इस देश से हर साल मुनाफे के तौर पर 65 अरब डॉलर लुट कर ले जा रहे है बावजूद ये इस देश के खुदरा बाज़ार मे FDI के लिए बैचैन है जिसका पुरे हिंदुस्तान मे लगातर विरोध्जारी है | जिसने प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के भी हाथ पाव बांध रखे है और उनकी विवसता जग जाहिर साबित हों चुकी है और मनमोहन सिंह कि स्थिति धोबी कि कुते जैसी हों गई है जो कि ना घर का होता है और ना घाट का होता है |
भारतीय कारपोरेट घराना सहारा ने न्यूयार्क और लंदन के प्रतिष्टित होटल प्लाज़ा और ग्रोस वेनोर हाउस का अधिग्रहण किया तो दूसरी तरफ ताज हॉटल के मालिक टाटा ने 2008 मे बोस्टन के रिट्ज कार्लटन होटल 17 करोड़ डॉलर मे ख़रीदा और इसी टाटा टी ने सन 2000 मे दुनीया कि सबसे बड़ी चाय कंपनी टोलेती का अधिग्रहण तो किया तो योजना आयोग के उपाध्क्चा मोंटक ने चाय को राष्टीय पेय घोषित करने कि
सिफारिस कर डाली इसका मतलब यह है कि भारतीय पूंजीपतियों के होटलों के अधिग्रहण से ना तो इन भारत के गरीब जनता का पेट भर पाया और नहीं चाय कि प्याश भी बुझ पाई ऐसा इसलिए कि यह भारत के पूंजीपतियओ का विकाश है अवाम का नहीं |
भारत कि पाइनियर दवा निर्माता कंपनी रैनबक्सी ने 2006 मे दुनिया कि बड़ी दवा बनाने वाली कम्पनियो ,इटली कि ग्लेक्सो एस्मिथलाई कि सहयोगी कंपनी एलन , रोमानिया कि सबसे बड़ी दवा कंपनी तेरापिया और बेलजियम कि एथिमएनवी का एक सप्ताह के भीतर अधिग्रहण कर लिया बावजूद भारत कि एक अरब कि आबादी दवा के बिना मर रही है इसलिए कि यह रैनबक्सी का विकाश था आम का नहीं|
2008 मे टाटा ने ब्रिटेन के बेहतरीन कार बनाने वाली कंपनी जगुवार और लैंडरोवर का अधिग्रहण २.३ अरब डॉलर मे कर लिया इससे भारत के गरीबो के घर मे चार पहिये कार नही आ गये कहने का मतलब स्पष्ट यह देश का विकाश नहीं यह पूंजीपतियो का विकाश है |
भारत का प्रमुख उद्योगपति टाटा स्वयं चाहता है कि भारत पाकिस्तान, भारत चीन के बीच दुशमनी कि खबरे बनी रहे ताकि आम जनता का ध्यान उसकी मूल समस्याओ पर ना जाये और पूंजीपतियों द्वार मुल्क के लुट खसोट पर पर्दा डाला जा सके साथ ही साथ चीन पाकिस्तान के यूद्ध के खबरों मे अन्ध राष्ट्रभक्ति मे दुबोये रखा जाय ताकि वह क्रांति व विद्रोह कि बाते ना सोचे |
हॉल ही मे टाटा ने पाकिस्तान को दोयम दर्जे का दुशमन वा चीन द्वार  पाकिस्तान को हथियार आपूर्ति करने वाला दुसमन करार दिया पर साम्राजवादी अमेरिका ने पाकिस्तान, चीन ,भारत तीनों को हाथियार आपूर्ति करते हुये इस छेत्र मे हथियारों कि दौड़ व अंतर महादुपीय यूद्ध उलझाये हुये है फिर भी उसे वह एक यूद्ध उन्मादी नहीं मानता जैसा कि अमेरिका के साथ टाटा के पुराने अदौगिक रिश्ते है |
भारत और पाकिस्तान के बीच चार चार यूद्ध क्रमशः १९४७,१९६५,१९७१,१९९९, और १९६२ मे चीन के साथ ये सभी यूद्ध कांग्रेसीयो ने अपने पडोसी के साथ लड़े फिर एक बार फिर पाकिस्तान को दुशमन करार देने का क्या मायने... एक और यूद्ध ? सच पूछिए तो कारगिल यूद्ध के बावजूद वाजपेयी का काल भारत पाकिस्तान सम्बंधो मे स्वर्ण युग की तरह याद किया जायेगा |
भारत और पाकिस्तान एक ही देश के दो पार्ट है बावजूद हिंदू वा मुस्लमान मजबहबी चरमपंथीयो के लिए इस हकीकत को पचा पाना सहज नहीं दोनों देशो के पूँजीपति वा सम्प्रदायक सामंत नहीं चाहते कि इन दोनों देशो कि जनता एक हों व भाईचारा के साथ रहे इनकी हरचंद कोशिश होती है कि ऐसे वारदातों को अंजाम जाय जिससे दोनों देश के बीच दुसमनी का माहौल हमेश हमेशा के लिए कायम रहे शांति वार्ताये न हों जिससे इनका लुट खसोट वा शोषण लगातार जारी रहे व गरीबी बेरोज़गारी अशिक्षा कुपोषण पर दुश्मनी का पर्दा डाला जा सके और जनता हिंदू और मुस्लमान के नाम पर लड़ती रहे और उनकी चाल व सरमायादारी सदियो तक कायम रहे |
इसीलिए ये बाजारों और भीड़ भरे इलाको मे बम विस्फोट करवाते रहते है ताकि दुश्मनी का अन्त ना हों दोनों देशो कि जनता हिंदू व मुसलिम साम्प्रदायिकता को लात मार एक न हों जाये जैसा कि भारत और पाकिस्तान के युवा और छात्र नवजवान इसे भली भाती समझने लगे है कि इन्ही सामंतो व सम्राज्यवादीयो ने ही हमारे बीच दुश्मनी फैला रखी है ताकि हम अपने हालत से नवाकिफ व बेखबर रहे ऐसे मे अगर क्रिकेट मैच कि बहाली होती है तो सराहनीय है |

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